उदित वाणी, रांची: स्वर्णरेखा परियोजना रांची में हुई लगभग 20 करोड़ रुपये के गबन के मामले में कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव समेत सत्तापक्ष के वरिष्ठ विधायकों ने अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा किया. इस मामले में सदन में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री योगेन्द्र प्रसाद बुरी तरह फंसते नजर आए. प्रदीप यादव ने स्वर्णरेखा परियोजना रांची में लिपिक सह कैशियर संतोष कुमार द्वारा 20 करोड़ रूपये अपने खाते में ट्रांसफर करने का मामला अल्पसूचित प्रश्नकाल के जरिये उठाया और कहा कि मामले में सिर्फ छोटे कर्मचारी संतोष कुमार पर ही प्राथमिकी दर्ज किया गया है. जबकि राशि की निकासी में डीडीओ कार्यपालक अभियंता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं किया गया. विपत्र में कार्यपालक अभियंता के भी हस्ताक्षर होते हैं.
मामले में प्रभारी मंत्री ने उत्तर देते हुए कहा कि संतोष कुमार द्वारा डीडीओ का फर्जी हस्ताक्षर कर राशि का गबन किया गया है. संतोष कुमार प्रथम द्रष्टया दोषी पाया गया है तथा उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे जेल भेजा गया है. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही मामले की जांच एसीबी से कराने का भी अनुरोध किया गया है. एसीबी जांच में दोषी पाये जाने पर तत्कालीन मुख्य अभियंता प्रभात कुमार सिंह एवं कार्यपालक अभियंता चंद्रशेखर आदि के खिलाफ भी कार्रवाई की जायेगी. लिहाजा इन दोनों अभियंताओं के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही संचालित करने का निर्णय लिया गया है. वहीं प्रदीप यादव ने विभागीय कार्यवाही को खानापूर्ति बताते हुए कहा कि जब उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई तो सरकार उन्हें विभागीय कार्यवाही से भी मुक्त कर दे. साथ ही उन्होंने कार्यपालक अभियंताओं को बचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया और सदन में बेल में धरने पर बैठने का अल्टीमेटम दिया.
वहीं मामले में सत्तापक्ष के ही वरिष्ठ विधायक झामुमो के स्टीफन मरांडी, मथुरा प्रसाद महतो व हेमलाल मुर्मू तथा कांग्रेस के रामेश्वर उरांव प्रदीप यादव के समर्थन में उतरे और दोनों अभियंताओं को बचाने का आरोप लगाया तथा दोनों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की. इस बीच मंत्री भी अपनी बात पर अड़ गए कि जांच में जो निष्कर्ष आयेगा. उसके आधार पर दोषी पाए जाने के आलोक में अभियंताओं के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने इसके लिए एक सप्ताह का समय देने का आग्रह किया. इस प्रश्न पर सदन में लगभग आधे घंटे तक वाद-विवाद होता रहा. इधर मामले की गंभीरता को देखते हुए स्पीकर रबीन्द्रनाथ महतो ने विभागीय मंत्री को एक सप्ताह में जांच कर चलते सत्र में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया और सवाल को स्थगित कर दिया.
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