
उदित वाणी, जमशेदपुर : सुंदरनगर में मंगलवार को रेलवे प्रशासन की ओर से अतिक्रमण हटाने के नाम पर बड़ी कार्रवाई करते हुए कुल 24 मकानों को ध्वस्त कर दिया गया। यह मकान रेलवे फाटक के आसपास झोपड़ीनुमा निर्माण थे, जिनमें वर्षों से गरीब परिवार रह रहे थे।
दोपहर के समय रेलवे की टीम जेसीबी मशीनों के साथ मौके पर पहुंची और सायरन बजाकर मकानों को गिराने की प्रक्रिया शुरू की। इससे पहले क्षेत्रवासियों को नोटिस देकर खाली करने की हिदायत दी गई थी, लेकिन उन्हें न कोई पुनर्वास विकल्प दिया गया और न ही मुआवजे का भरोसा।
रेलवे की इस कार्रवाई से प्रभावित लोगों में अफरा-तफरी मच गई। लोग अपने आशियानों से जल्दी-जल्दी बर्तन, कपड़े, लकड़ी और अन्य सामान समेटकर बाहर निकलते दिखे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद कई परिवार अपने सामान को बचा नहीं सके।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने की किसी भी कार्रवाई से पूर्व यह निर्देश दे रखा है कि प्रभावित लोगों को मुआवजा दिया जाना चाहिए, ताकि वे कहीं और पुनर्वास कर सकें। लेकिन सुंदरनगर में इस आदेश की सरेआम अवहेलना की गई।
स्थानीय निवासियों ने बताया कि उन्हें सिर्फ एक नोटिस थमाया गया और फिर रेलवे ने बुल्डोजर चला दिया। न कोई सर्वेक्षण हुआ, न कोई पुनर्वास योजना सामने रखी गई।
एक महिला, जिनका घर इस कार्रवाई में उजड़ गया, रोते हुए बोलीं, “हमने अपनी जिंदगी की सारी जमा-पूंजी से यह झोपड़ी बनाई थी। अब हम बच्चों को लेकर कहां जाएं?”
रेल प्रशासन ने इस कार्रवाई को नियमित अतिक्रमण हटाओ अभियान बताया है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “यह ज़मीन रेलवे की है और यहां निर्माण अवैध तरीके से किया गया था। नोटिस जारी कर दिया गया था, इसके बाद विधिसम्मत कार्रवाई की गई।”
हालांकि स्थानीय लोग प्रशासन के इस तर्क को असंवेदनशील और अड़ियल रवैया बता रहे हैं। उनका कहना है कि, “अगर यह अतिक्रमण था, तो रेलवे इतने वर्षों तक चुप क्यों बैठा रहा? और अब अचानक क्यों बिना पुनर्वास योजना के गरीबों को उजाड़ दिया गया?”
इस कार्रवाई को लेकर स्थानीय पार्षद और जनप्रतिनिधियों ने भी नाराजगी जताई है। पार्षद मंजू देवी ने कहा, “रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अनदेखी की और गरीबों को बिना वैकल्पिक व्यवस्था के बेघर कर दिया। हम इस मामले को जिला प्रशासन और राज्य सरकार के सामने उठाएंगे।”
स्थानीय सामाजिक संगठनों ने इस मामले पर रेलवे प्रशासन से जवाब और प्रभावितों के पुनर्वास की मांग की है। जनहित मंच नामक संगठन के संयोजक अरविंद मिश्रा ने कहा, “इस तरह की कार्रवाई मानवाधिकारों का उल्लंघन है। जब तक इन परिवारों को वैकल्पिक जगह और मुआवजा नहीं दिया जाता, आंदोलन जारी रहेगा।”
रेलवे द्वारा की गई यह कार्रवाई कानूनी और सुरक्षा की दृष्टि से चाहे जितनी जरूरी रही हो, लेकिन इसके क्रियान्वयन में मानवीय दृष्टिकोण की कमी साफ झलकती है। बिना मुआवजा और पुनर्वास के लोगों को बेघर करना न केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी संवेदनहीन निर्णय प्रतीत होता है।
अब देखना यह है कि प्रशासन और सरकार इस मामले पर क्या रुख अपनाते हैं, और क्या गरीब परिवारों को दोबारा अपना आशियाना बसाने का हक मिलेगा या नहीं।
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