उदित वाणी, सरायकेला: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने अपने परिवार एवं समाज के अन्य लोगों के साथ ओड़िशा के रायरंगपुर स्थित ओलचिकी लिपि के आविष्कारक पंडित रघुनाथ मुर्मू की समाधि पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. यह कार्यक्रम गुरु नेपेल दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में संथाल समाज के लोग शामिल हुए.
“हमारी भाषा और संस्कृति की पहचान”
चंपाई सोरेन ने इस अवसर पर कहा कि पंडित रघुनाथ मुर्मू न केवल संथाल समाज के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं. उनकी वजह से संथाल भाषा को पहचान मिली और हमारी संस्कृति संरक्षित हो सकी. आज का दिन हमें उनके योगदान को याद करने और समाज के भविष्य को सशक्त बनाने का संकल्प लेने का अवसर देता है.
“संथाल समाज के समक्ष बढ़ती चुनौतियां”
पूर्व मुख्यमंत्री ने संथाल समाज के घटते जनसंख्या अनुपात और बढ़ते बाहरी प्रभावों पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि एक ओर बांग्लादेशी घुसपैठ, तो दूसरी ओर धर्मांतरण जैसी चुनौतियां हमारे समाज के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या हमारे वीर पूर्वज—सिदो-कान्हू, बाबा तिलका मांझी और भगवान बिरसा मुंडा—ने इसी दिन के लिए बलिदान दिया था? उन्होंने सभी से समाज को संगठित रखने का आह्वान किया.
“गौरवशाली परंपराओं को आगे बढ़ाने की जरूरत”
चंपाई सोरेन ने कहा कि संथाल समाज की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को मजबूत करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है. उन्होंने युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने और समाज की उन्नति में सक्रिय भागीदारी निभाने की अपील की.
इस अवसर पर समाज के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे, जिन्होंने पंडित रघुनाथ मुर्मू के योगदान को नमन करते हुए उनकी शिक्षाओं को अपनाने का संकल्प लिया.
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