नई दिल्ली: जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में पदभार ग्रहण किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई। इससे पूर्व 51वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को समाप्त हो गया। जस्टिस गवई का कार्यकाल लगभग सात महीने का होगा, जो 23 नवंबर 2025 को समाप्त होगा।
दलित समुदाय से दूसरे और पहले बौद्ध सीजेआई
जस्टिस गवई भारत के दूसरे दलित समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं। इससे पूर्व जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन 2007 में इस पद पर आसीन हुए थे। हाल ही में एक अनौपचारिक बातचीत में जस्टिस गवई ने बताया कि वे देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश होंगे।
कानूनी यात्रा की शुरुआत से सुप्रीम कोर्ट तक
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे जस्टिस गवई ने 16 मार्च 1985 को वकालत की दुनिया में कदम रखा। उन्होंने शुरुआत में पूर्व महाधिवक्ता राजा एस. भोंसले के साथ कार्य किया। 1987 से 1990 तक बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वतंत्र वकालत की। नागपुर पीठ के समक्ष उन्होंने वर्षों तक विभिन्न मामलों की पैरवी की। संवैधानिक और प्रशासनिक कानून उनके प्रमुख क्षेत्र रहे। वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम, अमरावती विश्वविद्यालय और अन्य स्वायत्त संस्थानों के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्यरत रहे। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक भी रहे। जनवरी 2000 में वे सरकारी वकील व लोक अभियोजक बनाए गए।
न्यायपालिका में उन्नति
14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त हुए और 12 नवंबर 2005 को स्थायी न्यायाधीश बने। उन्होंने मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में न्यायिक कार्य किया। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। पिछले छह वर्षों में वे लगभग 700 पीठों का हिस्सा रहे, जिनमें संविधान, आपराधिक, पर्यावरण, शिक्षा और नागरिक अधिकारों से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की। उन्होंने कई ऐतिहासिक निर्णयों में भाग लिया।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सक्रियता
जस्टिस गवई ने उलानबटार (मंगोलिया), न्यूयॉर्क (अमेरिका), कार्डिफ़ (यूके), नैरोबी (केन्या) जैसे वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। वे कोलंबिया व हार्वर्ड विश्वविद्यालय सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में व्याख्यान भी दे चुके हैं।उनकी नियुक्ति न केवल न्यायपालिका में अनुभव और विद्वत्ता का प्रतीक है, बल्कि विविधता और सामाजिक समरसता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
(IANS)
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