उदित वाणी, नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को एक बड़ा बयान देते हुए भारत को एक झटका दिया. अमेरिकी संसद (कांग्रेस) के जॉइंट सेशन में संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा कि भारत हमसे 100 फीसदी से ज्यादा टैरिफ वसूलता है और अब हम भी अगले महीने से ऐसी ही नीति अपनाने जा रहे हैं. इसका मतलब यह है कि 2 अप्रैल से डोनाल्ड ट्रंप भारतीय उत्पादों पर रेसिप्रोकल टैरिफ नीति लागू करेंगे.
रेसिप्रोकल टैरिफ नीति क्या है?
रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब होता है प्रतिशोधात्मक टैरिफ या ‘जैसे को तैसा’ नीति. इसे सरल शब्दों में समझें तो यह एक प्रकार का व्यापार प्रतिबंध है, जो एक देश दूसरे देश पर तब लगाता है, जब वह देश भी उसी तरह का प्रतिबंध पहले देश पर लगाता है. उदाहरण के लिए, अगर एक देश दूसरे देश के उत्पादों पर 100 फीसदी टैक्स लगा रहा है, तो दूसरा देश भी अपने उत्पादों पर उसी तरह का टैक्स लगा सकता है. इस नीति का मुख्य उद्देश्य व्यापार में संतुलन बनाए रखना होता है.
रेसिप्रोकल टैरिफ का उद्देश्य
1. व्यापार संतुलन बनाए रखना: यह सुनिश्चित करना कि कोई देश दूसरे देश के सामान पर अत्यधिक टैक्स न लगाए.
2. स्थानीय उद्योगों की सुरक्षा: विदेशी सामान महंगा होने से स्थानीय उद्योगों को फायदा होता है.
3. व्यापार वार्ता का हिस्सा: कई बार इसे एक दबाव के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, ताकि दूसरा देश अपने टैक्स कम करे.
रेसिप्रोकल टैरिफ के नुकसान
1. व्यापार युद्ध: अगर दोनों देश एक-दूसरे पर टैक्स लगाते रहें, तो यह व्यापार युद्ध में बदल सकता है.
2. महंगाई: विदेशी सामान महंगे हो जाने से उपभोक्ताओं को नुकसान हो सकता है.
3. आपूर्ति श्रृंखला में बाधा: व्यापार युद्ध से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो सकती है.
रेसिप्रोकल टैरिफ का इतिहास
रेसिप्रोकल टैरिफ नीति की शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी. 1860 में ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कोबडेन-शेवेलियर संधि हुई, जिसमें दोनों देशों ने अपने टैरिफ कम किए. इसके बाद, 1930 में अमेरिका ने स्मूट-हॉले टैरिफ एक्ट लागू किया, जिसने वैश्विक व्यापार को प्रभावित किया और महामंदी का कारण बना. हाल के वर्षों में, ट्रंप प्रशासन ने चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों पर टैरिफ लगाए, जिसके जवाब में उन देशों ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैक्स लगाया.
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