उदितवाणी, कांड्रा : राजनगर की धरती शुक्रवार को आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा के लिए जुटे जनसैलाब की साक्षी बनी. धर्मांतरण और बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने बिगुल फूंका. हजारों की संख्या में उपस्थित आदिवासियों ने दोनों हाथ उठाकर इस आंदोलन को समर्थन दिया.
दीप प्रज्वलन से आरंभ, धर्मगुरुओं ने खोली पीड़ा
कार्यक्रम की शुरुआत परंपरागत देश परगना और माँझी परगनाओं द्वारा दीप प्रज्वलन से हुई. मंच से आदिवासी धर्मगुरुओं ने धर्मांतरण को सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरनाक बताते हुए इसे रोकने की माँग की.
“आदिवासी अस्तित्व की लड़ाई नई पीढ़ी को लड़नी होगी”
चम्पाई सोरेन ने अपने जोशीले संबोधन में वीर सिदो-कान्हू, तिलका मांझी और बिरसा मुंडा जैसे क्रांतिकारियों का स्मरण करते हुए कहा कि जब हमारे पूर्वजों ने कभी आत्म-सम्मान से समझौता नहीं किया, तो हम भी पीछे नहीं हटेंगे.
उन्होंने संसद में कार्तिक उरांव द्वारा पेश किए गए डीलिस्टिंग बिल का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरह कांग्रेस ने आदिवासियों के हितों को वर्षों तक नजरअंदाज किया.
धर्मांतरण और आरक्षण पर दो-टूक
पूर्व सीएम ने कहा कि जो व्यक्ति आदिवासी संस्कृति और परंपरा को त्याग चुका है, उसे अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. उन्होंने संथाल परगना, हजारीबाग और बोकारो में चल रहे आंदोलनों की जानकारी दी और कहा कि जल्द ही 10 लाख आदिवासियों के साथ एक विशाल रैली होगी, जिसकी गूंज दिल्ली तक पहुँचेगी.
“घुसपैठ से हमारी जमीन, बेटियाँ और अस्तित्व खतरे में”
उन्होंने भोगनाडीह, पाकुड़, साहिबगंज और सरायकेला-खरसावां के बांधगोड़ा जैसे इलाकों का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासी जमीनें हड़प रहे हैं और बेटियों की सुरक्षा खतरे में डाल रहे हैं.
“झारखंड सरकार बनी है मूकदर्शक”
सरकार पर तीखा हमला करते हुए उन्होंने कहा कि वोट बैंक की राजनीति के चलते राज्य सरकार आदिवासी मुद्दों पर आंखें मूंदे बैठी है. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर धर्मांतरण नहीं रुका, तो आने वाली पीढ़ी हमारे सरना स्थलों की पूजा कैसे करेगी?
आयोजन में उमड़ा जनसैलाब
यह जनसभा आदिवासी संगठन सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा आयोजित की गई थी. कार्यक्रम में हजारों आदिवासी महिला-पुरुषों की भागीदारी रही, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह आंदोलन अब जन-जन की आवाज बन चुका है.
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