नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा ने एक बार फिर अमेरिका को ‘बिन बुलाए मेहमान’ की भूमिका में ला खड़ा किया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि यह संघर्ष विराम उनके हस्तक्षेप से संभव हो पाया. उन्होंने खुलेआम कहा कि अगर वह न होते, तो भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध छिड़ सकता था.हालाँकि, भारत की ओर से ऐसी किसी भी मध्यस्थता की पुष्टि नहीं की गई. विदेश मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक, किसी ने भी अमेरिका की भूमिका का उल्लेख तक नहीं किया. यानी यह स्पष्ट हो गया कि अमेरिका एकतरफा ‘श्रेय लेने’ की कोशिश कर रहा है.
पाकिस्तान की गुहार और अमेरिका की ‘चौधराहट’
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने संघर्ष विराम की रात अपने संबोधन में अमेरिका, चीन, तुर्की, कतर और यूएई जैसे देशों का नाम लेकर आभार प्रकट किया. यह साफ संकेत था कि पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में यह कदम उठाया.शरीफ के कांपते शब्दों और डरे चेहरे ने बता दिया कि भारत की कार्रवाई ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया. इस मौके का फायदा अमेरिका ने उठाया और ‘संघर्ष रोकवाने’ का तमगा खुद को थमा लिया.
भारत का रुख: ‘सीधा, स्पष्ट और संप्रभु’
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में सीजफायर का ज़िक्र नहीं किया. उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत केवल दो विषयों पर होगी – आतंकवाद का खात्मा और पाक अधिकृत कश्मीर.विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस वार्ता में स्पष्ट किया कि सीजफायर डीजीएमओ स्तर की द्विपक्षीय बातचीत से हुआ. अमेरिका का कोई योगदान नहीं था.
अमेरिका का उद्देश्य: खोई साख की भरपाई?
दरअसल, अमेरिका वैश्विक मंच पर अपनी खोती साख से चिंतित है. रूस-यूक्रेन, इजरायल-गाज़ा और चीन-ताइवान जैसे मुद्दों पर उसका असर सीमित रह गया है. अब वह भारत-पाक संघर्ष विराम को ‘मध्यस्थता की जीत’ बताकर अपना पुराना रसूख लौटाना चाहता है.ट्रंप ने दावा किया – “हमने परमाणु युद्ध को टाल दिया.” यह बयान न केवल अतिरेक भरा था, बल्कि भारत की कूटनीति को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश भी.
अमेरिका की पाक-नीति पर सवाल
वर्षों से अमेरिका पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों और परमाणु हथियारों में दिलचस्पी लेता रहा है. उसके लिए यह संघर्ष विराम एक अवसर है – पाक की कमजोर घड़ी में अपने हित साधने का.अमेरिका ने हमेशा पाक के साथ ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ रखा है, जबकि उसी पाकिस्तान की आतंक पोषक नीति का खामियाजा खुद अमेरिका भुगत चुका है.
भारत अपनी राह पर अडिग
भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता. यह द्विपक्षीय मुद्दा है और भारत अपनी शर्तों पर ही बातचीत करेगा.अमेरिका की तरफ से बार-बार ‘चौधरी’ बनने की कोशिश ने उसकी भूमिका को हास्यास्पद बना दिया है. भारत की चुप्पी और मजबूती ने न केवल पाकिस्तान को बेनकाब किया, बल्कि अमेरिका की खुद की पीठ थपथपाने वाली नीति को भी दुनिया के सामने उजागर कर दिया.
(IANS)
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