जाने रांची की ट्राइबल एक्टिविस्ट बासवी किड़ो ने क्यों ऐसा कहा?
उदित वाणी, विशाखापत्तनम: आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में रविवार को आयोजित एक दिवसीय अखिल भारतीय जनजातीय सम्मेलन में आदिवासी इतिहास अकादमी की स्थापना, आदिवासी भाषाओं, संस्कृतियों का विकास सुनिश्चित करने के लिए एक नयी जनजातीय नीति का आह्वान किया गया.रांची की प्रसिद्ध आदिवासी लेखक और कार्यकर्ता (ट्राइबल एक्टिविस्ट) वासवी किड़ो ने सम्मेलन का उद्घाटन किया. सम्मेलन में आदिवासी चिकित्सा, व्यंजनों और अन्य ज्ञान पर प्रकाश डाला गया. ‘सोनोट जुआरÓ (प्रकृति कायम रहे), ऊटे आबुवा (यह जमीन हमारी है), बीर आबुवा (जंगल हमारे हैं) और दिसुम आबुवा-देश (देश) हमारा है और ‘जय जोहारÓ के नारे लगे.एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, किड़ो ने जोर दिया कि आदिवासियों को अपने अधिकारों पर लडऩे के लिए खुद को संगठित करना चाहिए, यह देखते हुए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेतृत्व वाली ताकतें आदिवासियों को कथित तौर पर विभाजित कर रही हैं और उनके बीच दरार पैदा कर रही हैं.
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