उदित वाणी, जमशेदपुर: आज बृहस्पति गृह सबसे चमकीला दिखाई देगा. यह दिन हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के लिए एक खास दिन होगा. यह खगोलीय घटना इस वर्ष के सबसे चमकीले रूप में बृहस्पति के दर्शन कराएगी, और नासा द्वारा बताए गए अनुसार, यह घटना वृषभ राशि के तारों के बीच पूर्व-उत्तर-पूर्व में उगते हुए दिखाई देगी. खगोलशास्त्र के शौकिनों और अनुभवी आकाशदर्शनकर्ताओं के लिए यह दृश्य लुभावना होगा. आइए, जानें इस अद्भुत रात के बारे में और कुछ खास बातें.
7 दिसंबर को बृहस्पति के साथ क्या होगा खास?
आज 7 दिसंबर को बृहस्पति ‘विपरीत’ स्थिति में पहुंचेगा. यह घटना हर 13 महीने में एक बार होती है. इस स्थिति में, पृथ्वी सूर्य और बृहस्पति के बीच आ जाती है, जिससे बृहस्पति पूरी तरह से प्रकाशित हो जाता है और पृथ्वी के सबसे निकटतम बिंदु पर होता है. इस बार, बृहस्पति नवंबर 2023 के बाद से पृथ्वी के सबसे करीब होगा, जिससे यह रात के आकाश में बेहद चमकीला और प्रमुख दिखाई देगा.
नासा के मुताबिक, विपरीत स्थिति में बृहस्पति पूरी रात दिखाई देगा. सूर्यास्त के समय यह पूर्व-उत्तर-पूर्व से उगते हुए, रात भर आकाश में घूमेगा और सुबह होते-होते पश्चिम में डूब जाएगा. आधी रात के आसपास, यह आकाश में अपने सबसे ऊंचे बिंदु पर होगा, जो इस घटना को देखने के लिए सबसे अनुकूल समय होगा.
क्या और कहां होगा?
इस रात, बृहस्पति वृषभ राशि में स्थित होगा, और इसके आसपास दो प्रमुख चमकीले तारे, एलनाथ और एल्डेबरन होंगे. एल्डेबरन, जिसे “बैल की आँख” भी कहा जाता है, एक चमकीला नारंगी तारा है, जो बृहस्पति की स्थिर चमक से खूबसूरती से विपरीत होगा. बृहस्पति की चमक इतनी अधिक होगी कि इसे आसानी से नंगी आँखों से देखा जा सकेगा. यह आकाश में किसी भी अन्य तारे से अधिक चमकेगा, जिससे यह एक ऐसा दृश्य बनेगा जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता.
आखिरकार, क्यों यह खगोलीय घटना इतनी खास है?
यह बृहस्पति की विपरीत स्थिति का मौका हर साल नहीं मिलता. बृहस्पति का इस प्रकार पृथ्वी के सबसे पास आना और इतनी तेज चमक के साथ आकाश में दिखना, एक दुर्लभ खगोलीय घटना है. इस अवसर पर बृहस्पति का दृश्य न केवल खगोलशास्त्रियों के लिए, बल्कि आकाश प्रेमियों के लिए भी एक अविस्मरणीय अनुभव होगा. बृहस्पति का अगला विरोध 10 जनवरी, 2026 को होगा, उसके बाद 10 फरवरी, 2027 और 13 मार्च, 2028 को विरोध होगा. ये पूर्वानुमानित घटनाएं पृथ्वी और बृहस्पति की भिन्न कक्षीय गति के कारण होती हैं, जिसमें पृथ्वी लगभग हर 13 महीने में बृहस्पति से आगे निकल जाती है.
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