जमशेदपुर: “तरु अशोक मम करहूं अशोका…” माता सीता का यह कथन अशोक वृक्ष के गहरे भावनात्मक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है. कहा जाता है कि लंका में अशोक वाटिका में रहते हुए उन्होंने इस वृक्ष से अपनी शोक की पीड़ा को कम होते पाया. तभी से अशोक को महिलाओं के दुख-दर्द का हरने वाला वृक्ष माना जाता है.
धार्मिक आस्था और पौराणिक महत्त्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अशोक वृक्ष की उत्पत्ति स्वयं भगवान शिव से जुड़ी है. चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को अशोक अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन इसकी पूजा करने से न केवल रोग और शोक दूर होते हैं, बल्कि सुख और शांति की भी प्राप्ति होती है.
महिलाओं का मित्र: आयुर्वेद में अशोक
पंजाब स्थित बाबे के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के डॉ. प्रमोद आनंद तिवारी बताते हैं कि अशोक को स्त्री रोगों के उपचार में अत्यंत प्रभावशाली माना गया है. मासिक धर्म में होने वाले दर्द, ऐंठन, अनियमितता और भारीपन में यह विशेष रूप से लाभकारी है. इसे “स्त्रियों का सच्चा मित्र” कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी.
औषधीय उपयोग और सेवन विधि
आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार अशोक की छाल का चूर्ण शहद या गर्म पानी के साथ दिन में दो बार लिया जा सकता है. यह रक्त शुद्ध करता है, जिससे त्वचा में निखार आता है. चेहरे पर इसका लेप लगाने से डेड स्किन हटती है और मुहासों की समस्या में राहत मिलती है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पोषणतत्व
विभिन्न शोधों में पाया गया है कि अशोक की छाल पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में सक्षम है. यह वात को नियंत्रित कर पाचनतंत्र को मज़बूत बनाता है, जिससे गैस, ऐंठन और कब्ज जैसी समस्याओं में राहत मिलती है.
अशोक के वृक्ष में ग्लाइकोसाइड्स, टैनिन, और फ्लेवोनोइड्स जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर को टॉनिक के रूप में शक्ति प्रदान करते हैं. इसकी जड़ें और छाल त्वचा संबंधी रोगों के उपचार में भी उपयोगी हैं.
सावधानी और सलाह
डॉ. तिवारी चेतावनी देते हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान और उच्च रक्तचाप के रोगियों को इसका सेवन डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं करना चाहिए. आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग भी विशेषज्ञ की देखरेख में ही किया जाना उचित होता है.
(IANS)
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