राँची: देश भर में तापमान नए रिकॉर्ड छू रहा है, लेकिन इसी बीच जलाशयों में सामान्य से अधिक पानी की उपलब्धता ने थोड़ी राहत दी है. मई-जून की गर्मी में पीने और सिंचाई के पानी को लेकर बनी चिंताओं पर आंशिक विराम लगा है.
जलाशयों में पानी की स्थिति
केंद्रीय जल आयोग (CWC) के अनुसार, जिन 161 प्रमुख जलाशयों की निगरानी की जाती है, उनमें 3 अप्रैल 2025 तक 72.91 अरब घन मीटर (BCM) पानी मौजूद था. यह कुल क्षमता का लगभग 40 प्रतिशत है.
पिछले वर्ष की तुलना में पानी की उपलब्धता 14.23 प्रतिशत अधिक है, जबकि 10 वर्षों के औसत (सामान्य स्तर) की तुलना में यह 17.99 प्रतिशत अधिक है.
मानसून बना बड़ा कारक
इस सकारात्मक स्थिति की मुख्य वजह वर्ष 2024 का बेहतर मानसून रहा. भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, पिछले वर्ष मानसून के दौरान औसत से 8 प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी.
स्काईमेट जैसी निजी मौसम एजेंसियों ने 2025 के मानसून को भी सामान्य से थोड़ा बेहतर बताया है. ला नीना के प्रभाव का अंत और अल नीनो की अनुपस्थिति, इस वर्ष के लिए अनुकूल संकेत माने जा रहे हैं.
क्षेत्रीय स्थिति: कहां संकट और कहां राहत?
उत्तर और पूर्वी भारत: चिंता की स्थिति
उत्तर भारत (हिमाचल, पंजाब, राजस्थान) में जल स्तर में 30 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है.
पूर्वी क्षेत्र (बिहार, झारखंड, असम आदि) में 20 प्रतिशत की कमी सामने आई है.
मध्य भारत: स्थिर स्थिति
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में 22.02 BCM पानी है, जो पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा अधिक है.
दक्षिण भारत: आशाजनक स्थिति
तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में जल स्तर लगभग दोगुना हुआ है. वर्तमान में 20.09 BCM जल उपलब्ध है.
पश्चिम भारत: स्थिति संतोषजनक
गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा में जलाशयों में पानी 20 प्रतिशत अधिक दर्ज किया गया है.
सामान्य स्तर से तुलना: किस राज्य में कितनी कमी या बढ़ोतरी?
मिजोरम में जल स्तर सामान्य से 99.4% कम, सबसे खराब स्थिति
पंजाब में 56.8%, हिमाचल में 39.7%, और बिहार में 37.2% कम
तमिलनाडु में सामान्य से 71% अधिक, मेघालय में 73% अधिक
गुजरात में 64%, आंध्र और उत्तर प्रदेश में 50-50%, असम में 40% अधिक जल स्तर
आगे की राह: जल संरक्षण ही समाधान
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अच्छा मानसून और जल प्रबंधन, जल संकट को टालने में सहायक हो सकते हैं. लेकिन क्षेत्रीय असंतुलन और कुछ राज्यों में गंभीर गिरावट चिंताजनक है.यह समय है जब भारत को जल संरक्षण की नीतियों को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है.
(IANS)
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