उदित वाणी, देवघर: झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है. यहां की कुछ परंपराएं ऐसी हैं, जो अन्य ज्योतिर्लिंगों और मंदिरों में नहीं पाई जातीं. होली के पर्व पर बैद्यनाथ मंदिर में ‘हरिहर मिलन’ की रस्म निभाई जाती है, जो हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होती है.
हरिहर मिलन की परंपरा का ऐतिहासिक संदर्भ
यह परंपरा कई सदियों पुरानी है और इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. लोग अक्सर सवाल करते हैं कि यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? इसके अनुसार, एक बार रावण ने भगवान शिव से लंका चलने का अनुरोध किया था. भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि वह जहां भी शिवलिंग रखा जाएगा, वहां वह स्थापित हो जाएंगे. रावण इस शर्त को मानता हुआ शिवलिंग लेकर लंका की ओर चल पड़ा.
लेकिन यात्रा के दौरान उसे किसी कारणवश रुकना पड़ा. उस समय श्री कृष्ण ने बैजू बालक का रूप धारण कर गायों को चरा रहे थे. रावण ने शिवलिंग को बैजू के हाथों में सौंपा और अपने कार्यों में व्यस्त हो गया. इस बीच, श्री कृष्ण ने वह शिवलिंग वहीं स्थापित कर दिया. इस घटना के बाद से ही देवघर स्थित बैद्यनाथ मंदिर में हरिहर मिलन की परंपरा शुरू हुई.
हरिहर मिलन का अर्थ और महत्व
‘हरिहर मिलन’ का शाब्दिक अर्थ है भगवान विष्णु (हरि) और भगवान महादेव (हर) का मिलन. यह परंपरा विशेष रूप से फाल्गुन माह की पूर्णिमा को आयोजित होती है, जो इस साल 13 मार्च को होलिका दहन की रात से मेल खाती है. इस दिन मंदिर में भगवान विष्णु और भगवान शिव का प्रतीकात्मक मिलन होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक खास धार्मिक अनुभव होता है.
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