उदित वाणी, पोटका: आदिवासी नेता चंपई सोरेन ने हाल ही में एक अहम बयान दिया, जिसमें उन्होंने धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासियों को आरक्षण से बाहर करने की बात की. उनका यह बयान आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाने के उद्देश्य से था. उन्होंने कहा कि, “हमारे समुदाय को धर्म परिवर्तन के बाद मिलने वाली आरक्षण सुविधाएं समाप्त होनी चाहिए.”
बाबा कार्तिक उरांव की सिफारिशें और कांग्रेस की प्रतिक्रिया
वर्ष 1967 में आदिवासी नेता बाबा कार्तिक उरांव ने संसद में एक डिलिस्टिंग प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें उन्होंने धर्म बदल चुके लोगों को आरक्षण से बाहर करने का सुझाव दिया था. उनकी इस सिफारिश को तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा संसदीय समिति को भेज दिया गया था. 17 नवंबर 1969 को संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी सिफारिश में कहा था कि यदि कोई व्यक्ति आदिवासी परंपराओं को छोड़कर अन्य धर्म अपनाता है, तो वह अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं माना जाएगा और उसे आरक्षण की सुविधाएं नहीं मिलेंगी.
इसके बाद भी जब कोई कदम नहीं उठाया गया, तो बाबा कार्तिक उरांव ने 322 लोकसभा और 26 राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षर के साथ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने इस सिफारिश को स्वीकार करने की मांग की. हालांकि, ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में कांग्रेस सरकार ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी होने का आरोप
चंपई सोरेन ने उड़ीसा जाने के दौरान अपने समर्थकों से बातचीत में कहा कि कांग्रेस आदिवासी विरोधी पार्टी है. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने 1961 में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे “आदिवासी धर्म कोड” को जनगणना से हटवाया और झारखंड आंदोलन के दौरान आदिवासियों पर कई बार गोली चलवाने का दुस्साहस भी किया. सोरेन ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की नीतियों ने आदिवासी समाज को लगातार नुकसान पहुँचाया है.
आदिवासी संस्कृति का संकट
चंपई सोरेन ने कहा कि आदिवासी संस्कृति सिर्फ पूजन पद्धतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी पूरी जीवनशैली का हिस्सा है. जन्म, विवाह और मृत्यु से जुड़ी सभी प्रक्रियाओं को आदिवासी समाज के पारंपरिक लोग जैसे मांझी, पाहन, मानकी मुंडा आदि पूरा करते हैं. धर्म परिवर्तन के बाद इन प्रक्रियाओं के लिए लोग चर्च जाते हैं, जहां “मरांग बुरु” या “सिंग बोंगा” की पूजा होती है. सोरेन ने सवाल उठाया कि, “क्या धर्मांतरण के बाद भी यह लोग आरक्षण का लाभ उठाने के हकदार हैं, जबकि सरना आदिवासी समाज के बच्चे इस प्रतिस्पर्धा में पीछे होते जा रहे हैं?”
समाज और संस्कृति के अस्तित्व का खतरा
चंपई सोरेन ने आगे कहा, “अगर धर्मांतरण को नहीं रोका गया, तो भविष्य में हमारे सरना स्थलों, जाहेरस्थानों, और देशाउली जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल सूने हो जाएंगे. हमारी संस्कृति और अस्तित्व के लिए यह एक बड़ा संकट बन सकता है.”
आदिवासी समाज के अधिकारों की सुरक्षा
आदिवासी नेता ने यह भी कहा कि आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा करने के लिए उन्हें एकजुट होना पड़ेगा. उन्होंने यह आश्वासन भी दिया कि वे बंगाल और बिहार जैसे क्षेत्रों में जाकर आदिवासी समुदाय को इस मुद्दे पर जागरूक करेंगे और उनका समर्थन जुटाने की कोशिश करेंगे.
संस्कृति के बचाव में एक निर्णायक कदम
चंपई सोरेन के इस बयान से यह साफ है कि आदिवासी समाज अपनी संस्कृति और अधिकारों के संरक्षण के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा. उनका यह प्रयास समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया है कि आरक्षण का लाभ उन लोगों को ही मिलना चाहिए जो आदिवासी परंपराओं और जीवनशैली से जुड़े हुए हैं.
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