
* हिनू चौक जाम कर रहे बंद समर्थकों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर खदेड़ा
उदित वाणी, रांची : सिरमटोली फलाईओवर रैंप को हटाने के मुद्ये पर आयोजित आदिवासी संगठनों द्वारा आहूत राज्यव्यापी बंद का मिलाजुला असर देखने को मिला. यद्यपि राज्य के ज्यादातर जिलों में बंद का असर नहीं दिखा. रांची शहर के बाहरी इलाके में बंद समर्थकों ने रोड जाम कर आवाजाही ठप्प कर दिया. ओरमांझी व रामगढ़ जिले के कुज्जू में एनएच-33 व लातेहार में एनएच-39 को जाम किये जाने से वाहनों की लंबी कतारें लगी. जहां-तहां सड़क पर टायर जलाकर बंद समर्थकों ने अपना विरोध प्रकट किया. एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन जाने वाले लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा.
हिनू चौक जाम कर रहे बंद समर्थकों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर खदेड़ा. बंद को देखते हुए बड़े पैमाने पर सुरक्षाबलों को तैनात किया गया था. एहतियात के तौर पर 25 बंद समर्थकों को डिटेन किया था. जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया. जबकि आदिवासी नेताओं ने रैंप के निर्माण का कड़ा विरोध करते हुए हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर आदिवासी धार्मिक पहचान को मिटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया. साथ ही चेतावनी दी कि अगर उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया, तो वे तीव्र विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे. एक आदिवासी नेता ने कहा कि फिर 6 जून को बंद करेंगे. अगर हमारी आवाज को नजरअंदाज किया गया, तो हम विधानसभा और फिर संसद तक मार्च करेंगे.
वहीं आदिवासी संगठनों द्वारा अब सिरमटोली फलाईओवर के अलावा राज्य सरकार के समक्ष अन्य मांगें भी रखी गई है. उन्होंने कहा कि अब केवल रैंप का मामला नहीं है. यह हमारे अस्तित्व का मामला है. संगठन के सदस्यों ने बताया कि झारखंड बंद रैंप निर्माण को हटाने समेत आदिवासी के धर्म स्थली मारंग बुरू पारसनाथ पहाड़ लुगूबुरू, मुड़हर पहाड़, पिठोरिया पहाड व दिउडी मंदिर को बचाने, पेसा कानून लागू करने, धार्मिक न्यास बोर्ड, नियोजन नीति, लैंड बैंक, ट्राइबल यूनिवर्सिटी, भाषा संस्कृति, शराबबंदी और नगड़ी में कृषि योग भूमि पर कब्जा आदि मामलों को लेकर किया गया है.
सिरमटोली फ्लाईओवर मामले में हस्तक्षेप कर समाधान निकालें- बाबूलाल मरांडी
इधर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सह नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर गंभीर भावनात्मक मुद्दों से आंख मूंद लेने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि सिरमटोली फ्लाईओवर मामले में बीते कई महीनों से आदिवासी संगठन अपनी मांग उठा रहे हैं. लेकिन राज्य सरकार असंवेदनशील हो गई है और आदिवासी समाज को आंदोलन व प्रदर्शन करने के लिए बाध्य कर रही है. मुख्यमंत्री से आग्रह है कि आदिवासी समाज की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाये बगैर हस्तक्षेप कर मामले को सुलझाएं, ताकि जारी गतिरोध को समाप्त किया जा सके.
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