उदित वाणी, सरायकेला: राजकीय चैत्र पर्व सह छऊ महोत्सव 2025 का सफल आयोजन भले ही संपन्न हो गया हो, लेकिन कला नगरी सरायकेला की आत्मा कही जानेवाले पद्मश्री छऊ गुरु शशधर आचार्य इस बार बेहद आहत हैं. उन्होंने सार्वजनिक मंच से यह कहते हुए अपने दर्द को व्यक्त किया कि वे कलाकार हैं, न कि कोई राजनेता.तीन दिन पहले हुए समापन समारोह में वे शामिल नहीं हुए. इस निर्णय के पीछे छिपी पीड़ा और उपेक्षा का इतिहास कई वर्षों से दोहराया जा रहा है. हर साल महोत्सव के पहले विवाद उठता है और उसके बाद शांति छा जाती है, लेकिन इस चक्रव्यूह में बार-बार घसीटे जा रहे हैं आचार्य शशधर.
विरोध, बहिष्कार और पुतला दहन की धमकी
आचार्य को शुरुआत में न्यौता दिया गया. वे शामिल भी हुए. मगर जैसे ही आर्टिस्ट एसोसिएशन ने विरोध किया, उन्होंने खुद को पूरे कार्यक्रम से अलग कर लिया.अब इस विरोध ने एक नया रूप ले लिया है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में उनके हवाले से प्रकाशित किया गया कि उन्होंने पूर्व छऊ गुरुओं को शिक्षा दी है. इसी बयान के आधार पर उनके खिलाफ विरोध और यहां तक कि पुतला दहन की धमकी भी सामने आई.
शशधर आचार्य ने इन सबका जवाब बेहद पीड़ा के साथ दिया –”मुझे जलाना है तो मैं जीवित हूं. मगर कृपया मुझे अपमानित न करें.”
“शास्त्रार्थ करें, मीडिया की आड़ न लें”
उन्होंने विरोधियों को सीधी चुनौती दी – “मैं कलाकार हूं. मंच तैयार करें और शास्त्रार्थ करें. मगर छऊ जैसी पवित्र कला को राजनीति में घसीट कर अपवित्र न करें.” आचार्य ने यह भी कहा कि कुछ मीडियाकर्मी तथ्यों से परे जाकर खबरें चला रहे हैं, जिससे न केवल उनका बल्कि ‘पद्मश्री’ और ‘छऊ’ जैसे राष्ट्रीय गौरव का अपमान हो रहा है.
छऊ परंपरा की छठी पीढ़ी तक का योगदान
शशधर आचार्य ने स्पष्ट किया कि उनका पूरा जीवन छऊ को समर्पित रहा है. उनकी पाँचवीं पीढ़ी इस कला को आगे बढ़ा रही है और अब उनका पुत्र छठी पीढ़ी के रूप में छऊ साधना से जुड़ चुका है. दिल्ली छोड़कर वे पांच साल पहले सरायकेला इसलिए लौटे ताकि यहाँ की अगली पीढ़ी को निःशुल्क छऊ की तालीम दे सकें. आज देश-विदेश के बच्चे उनसे यह परंपरा सीखने आ रहे हैं.
“राजनीति के तराजू पर क्यों तौल रहे मेरी कला को?”
आचार्य ने बताया कि पहले छऊ कलाकेंद्र का वार्षिक बजट 2 से ढाई लाख हुआ करता था, जिसे उनकी कोशिशों से अब 70 लाख तक पहुंचाया गया है. मगर इन उपलब्धियों की चर्चा नहीं हो रही.विरोध करने वालों से उन्होंने कहा – “कला में मुकाबला करें, कुर्सियों की दौड़ में नहीं.”
“गुरु विहीन हो गया है छऊ केंद्र”
उन्होंने चिंता जताई कि आज छऊ कलाकेंद्र में योग्य गुरु नहीं हैं. बच्चों की ताल-लय बिगड़ रही है. इससे छऊ अपने मूल स्वभाव से भटक सकता है.उन्होंने यह भी साफ किया कि उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि उन्होंने पूर्व गुरुओं को तालीम दी है. बल्कि उन्होंने कहा कि मकरध्वज दारोगा, जयराम सामल, अवनि कांत मोहंती, डोम काका और बिसो काका जैसे महान गुरुओं ने उनके केंद्र में बच्चों को शिक्षा दी. मगर कुछ लोगों ने उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर विवाद खड़ा कर दिया.
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