रांची: झारखंड के पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच अधिकारों और नियमों की व्याख्या को लेकर असामान्य स्थिति उत्पन्न हो गई है. केंद्र सरकार ने गुप्ता को 30 अप्रैल 2025 से सेवानिवृत्त घोषित कर दिया है, वहीं राज्य सरकार उन्हें उनके पद पर बनाए रखने के अपने फैसले पर अडिग है.
केंद्र ने दो बार भेजा पत्र, बताया सेवानिवृत्त
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 22 अप्रैल को झारखंड के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर बताया कि 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी अनुराग गुप्ता ने 60 वर्ष की आयु पूरी कर ली है, अतः वह 30 अप्रैल को स्वचालित रूप से सेवानिवृत्त माने जाएंगे. पत्र में यह भी कहा गया कि 30 अप्रैल के बाद गुप्ता को डीजीपी पद पर बनाए रखना अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 के नियम 16(1) का उल्लंघन है और यह सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के भी खिलाफ है.
राज्य सरकार ने दी सफाई, बताई अपनी नियमावली
राज्य सरकार ने केंद्र को 30 अप्रैल को ईमेल भेजते हुए बताया कि झारखंड में ‘पुलिस महानिदेशक का चयन और नियुक्ति नियमावली-2025’ अधिसूचित की जा चुकी है. इसी के तहत अनुराग गुप्ता को 2 फरवरी 2025 से दो वर्षों के लिए स्थायी डीजीपी नियुक्त किया गया है. राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें डीजीपी का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्षों का होना आवश्यक बताया गया है.
केंद्र ने दूसरी बार किया खारिज, कहा नियमावली अवैध
राज्य सरकार के जवाब को केंद्र ने अस्वीकार कर दिया है. मंत्रालय ने झारखंड सरकार को दूसरी बार पत्र भेजते हुए कहा कि राज्य द्वारा बनाई गई नियमावली, जिसके आधार पर अनुराग गुप्ता को पद पर बरकरार रखा गया है, कानूनी रूप से वैध नहीं है. केंद्र ने दोहराया कि अखिल भारतीय सेवा नियमों के अंतर्गत यह नियुक्ति अवैध मानी जाएगी.
कैबिनेट से मिली थी मंजूरी, कमेटी की अनुशंसा पर हुआ था चयन
गौरतलब है कि 8 जनवरी 2025 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में डीजीपी नियुक्ति के लिए नई नियमावली को मंजूरी दी गई थी. इसके तहत उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में चयन समिति गठित की गई थी. समिति की अनुशंसा पर अनुराग गुप्ता को स्थायी डीजीपी नियुक्त किया गया और उनकी सेवा अवधि दो वर्ष तय की गई.
अब आगे क्या होगा? संवैधानिक टकराव या समाधान?
इस पूरे मामले ने संविधानिक अधिकारों के क्षेत्राधिकार और सेवा नियमों की व्याख्या को केंद्र में ला खड़ा किया है. अब देखना होगा कि इस असामान्य टकराव का अंत किस रूप में होता है—संवैधानिक हल से या न्यायिक हस्तक्षेप से.
(IANS)
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