उदित वाणी, जमशेदपुर: टाटा ग्रुप और राइट्स लिमिटेड मिलकर रेलवे के कोच का निर्माण करने जा रहे हैं और इसमें झारखंड के लिए मौका हो सकता है. ऐसा मानना है रांची के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार का. श्री पोद्दार ने अपने एक ट्वीट में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को टैग करते हुए कहा है कि राज्य सरकार को यह कोच फैक्टरी रांची के एचईसी में लगवाने की पहल करनी चाहिए.उल्लेखनीय है कि पिछले माह टाटा ग्रुप और राइट्स लिमिटेड (रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस लिमिटेड) के बीच एक एमओयू (समझौता) हुआ है जिसके तहत मेट्रो रेल समेत अर्बन मास रैपिड ट्रांसपोर्ट के लिए रेलवे के कोच बनाए जाएंगे. समझौते के तहत टाटा अपनी सेवाएं रेलवे रोलिंग स्टॉक निर्यात करने के साथ आधारभूत संरचना के निर्माण में भी देने जा रहा है. इस समझौते के बाद भारतीय रेलवे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बड़े स्तर पर अपनी भूमिका निभाने जा रही है.अभी तक चीन की सी.आर.आर.सी.ए. एल्सटॉम और दक्षिण कोरिया की हुंडई जैसे कुछ बड़े खिलाडिय़ों का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दबदबा बना हुआ है. पूरी दुनिया के लिए रेलवे कोच बनाने के काम में इन चंद कंपनियों का सिक्का चलता है, इस क्षेत्र में इनका एकाधिकार है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी तक किसी विकासशील देश की किसी कंपनी ने इस क्षेत्र में एंट्री नहीं की है. जो छोटी-मोटी कंपनियां हैं वे अपने देश के देसी बाजारों तक ही सीमीति है. उनके पास अंतर्रारष्ट्रीय बाजार में उतरने के लिए संसाधन नहीं हैं.
भारत में घरेलू खपत ही नहीं पूरी हो पाती
भारत में रेलवे के कोच इंजन बनते हैं लेकिन देसी खपत इतनी अधिक है कि भारतीय रेलवे इसे पूरा करने में ही जुटी रहती है. लेकिन जल्दी ही अब हवा की दिशा बदलने जा रही है.हाल के वर्षों में चीन की रेलवे कंपनियों से टेंडर जीतने के बाद भारतीय रेलवे का अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के प्रति रुझान और आत्मविश्वास दोनों बढ़ा है. अभी हाल ही में अफ्रीकी देश मोजाम्बिक से भारतीय रेलवे को रेलवे इंजन और कोच बनाने का ऑर्डर मिला है. इसके साथ ही श्रीलंका से एस.डी.एम.यू. की साज-सज्जा और 160 कोच निर्यात करने का ऑर्डर भी मिला है. इन सारे टेंडरों में चीन की सी. आर. आर. सी. कंपनी भी शामिल थी, जिसे हराकर भारत ने ये ऑर्डर हासिल किए हैं.
टाटा का साथ मिलने से बढ़ेंगे अवसर
समझौते के तहत राइट्स और टाटा दोनों मिलकर रेलवे कोच बनाने के साथ उसके मेंटनेंस, तकनीकी सहयोग और आधारभूत ढांचे के निर्माण के क्षेत्र में काम करेंगे. न सिर्फ घरेलू क्षेत्र में, बल्कि विदेशों में भी ये रेलवे और मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बनाने, उसे उन्नत करने और रख-रखाव के क्षेत्र में काम करेंगे. इस साझेदारी में राइट्स टाटा के साथ अपने अनुभव, डिजाइन, मार्केटिंग, सपोर्ट साझा करेगी. इसके बाद टाटा सभी परियोजनाओं के क्षेत्र में आकार देने से लेकर उनके निर्माण के क्षेत्र में देसी और विदेशी ग्राहकों के लिए काम करने वाला है. राइट्स अधिक प्रतिस्पर्धी कीमत के पास इस क्षेत्र में अब तक जितना भी अनुभव की दिशा बदलने है वह टाटा के साथ बांटेगा.
कई प्रोजेक्ट्स निकल गए रेलवे के हाथ से
पिछले कुछ वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय रेलवे के हाथ से कुछ प्रोजेक्ट निकल गए, क्योंकि एक तरफ जहां भारतीय रेलवे के दाम प्रतिस्पर्धी नहीं थे तो वहीं दूसरी तरफ जिन कोचों का निर्माण भारतीय रेलवे ने किया था वह विदेशी कंपनियों द्वारा बनाए गए रेलवे कोच के सामने डिजाइन, साज-सज्जा और दूसरी सुविधाओं में पिछड़ गए होगा. इससे सबक लेकर भारतीय रेलवे ने प्राइवेट कंपनी के साथ हाथ मिलाया है, ताकि अनुभव और गुणवत्ता का अच्छा मेल हो सके और यह देसी के साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपनी साख जमा सके.
साख का मिलेगा फायदा
टाटा का नाम और उसकी साख देसी-विदेशी बाजारों में बहुत अच्छी है, शायद यही वजह है कि बड़े रेलवे निर्माताओं के सामने टाटा जैसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय नाम को सामने रखने की जरूरत अधिक महसूस हो रही थी. शायद इसी वजह से भारत सरकार ने योजना बनाई कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के साथ देसी बाजारों में भी प्राइवेट कंपनियों को बढ़ावा दिया जाए, जिससे वह प्रतिस्पर्धी दामों पर टेंडर हासिल कर सकें. इससे अंतराष्ट्रीय ग्राहकों की मांग को अधिक प्रतिस्पर्धी कीमत पर पूरा किया जा सकेगा.
समझा जाता है कि राइट्स के साथ हुए इस बड़े समझौते के बाद जल्दी ही टाटा अपनी रेलवे यूनिट बनाकर सीधे तौर पर रेलवे विनिर्माण के क्षेत्र में उतरने वाली है.इस क्षेत्र में जल्दी ही चीन का दबदबा खत्म होगा क्योंकि टाटा जैसी कंपनी दुनिया भर में अपनी गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धी दामों के लिए जानी जाती है.
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