- आज तय होगा जेएलकेएम का भविष्य
उदित वाणी, रांची : झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के 29 वर्षीय संस्थापक और प्रमुख जयराम महतो, जिन्हें “टाइगर” के नाम से जाना जाता है, इस बार के चुनावी समर में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं. उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह “कैंची” है, और यह नवगठित संगठन पहली बार चुनावी मैदान में उतरकर 71 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रहा है. जयराम महतो खुद बोकारो के बेरमो व गिरडीह के डुमरी से चुनाव लड़े हैं.
इस साल लोस चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी का गठन किया. 2024 लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़े थे. विधानसभा चुनाव से 2 महीने पहले चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी को पंजीकृत किया. 3,47,322 वोट हासिल कर बीजेपी और जेएमएम उम्मीदवारों के बाद तीसरे स्थान पर रहे.
कुड़मी समुदाय के उभरते नेता
जयराम महतो का जन्म 1995 में धनबाद जिले के मानतंड गांव में हुआ था. उनके पिता झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के आंदोलन में सक्रिय सदस्य थे. जयराम अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुके हैं.
खुद को “झारखंड का बेटा” बताने वाले महतो ने इस साल झारखंड की राजनीति में धमाकेदार एंट्री की है और अपनी सोशल मीडिया लोकप्रियता के दम पर जाति और वर्ग के विभाजनों को चुनौती दी है.
जयराम महतो कुड़मी समुदाय से आते हैं, जिसे झारखंड के मतदाताओं में लगभग 15% का प्रभावी हिस्सा माना जाता है. यह समुदाय राज्य के कोयला क्षेत्र—रामगढ़, धनबाद, गिरिडीह, बोकारो और हजारीबाग जिलों—में राजनीतिक संतुलन बदलने की क्षमता रखता है. कुड़मी समुदाय के ओबीसी वर्ग का यह युवा नेता असंगठित श्रमिकों की समस्याओं और प्रवासी संकट को अपने 50-सूत्रीय चुनावी एजेंडे में प्राथमिकता देकर ध्यान आकर्षित कर रहा है.
सोशल मीडिया से हुए हिट
चुनाव प्रचार के दौरान जयराम महतो की रैलियों और रोड शो में लोगों की भारी भीड़ उमड़ी, लेकिन यह भीड़ वोटों में कितना परिवर्तित होगी, इसका फैसला केवल चुनाव परिणाम ही करेगा. जयराम की बढ़ती लोकप्रियता में सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है, जहां उनके हजारों फॉलोअर्स हैं.
सोशल मीडिया पर साझा किए गए उनके वीडियो में वे झारखंड के मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाते हैं. इनमें भ्रष्टाचार, नेताओं द्वारा जनता के धन का दुरुपयोग, राज्य की गरीबी, और बाहरी लोगों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता जैसे विषय शामिल हैं. जयराम अपने भाषणों में यह बताते नजर आते हैं कि कैसे झारखंड के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया गया है और राज्य के संसाधनों का फायदा बाहरी लोगों ने उठाया है.
भाजपा और झामुमो पर प्रभाव
हालांकि 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के अनुसार, कुड़मी समुदाय राज्य की कुल जनसंख्या का केवल 8% है, लेकिन इस समुदाय के वोटों का एकीकरण भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है, क्योंकि यह परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थन करता रहा है. दूसरी ओर, जिन सीटों पर जेएलकेएम चुनाव लड़ रही है, वहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
जयराम महतो की इस नई राजनीतिक पहल से झारखंड की राजनीति में कितना बड़ा बदलाव आएगा, यह देखना दिलचस्प होगा. क्या वे झारखंड की सत्ता समीकरणों में बड़ा प्रभाव डाल पाएंगे या यह सिर्फ एक उभरते नेता की शुरुआती झलक भर साबित होगी? वक्त ही इसका फैसला करेगा.
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