उदित वाणी, जमशेदपुर: ज्येष्ठ मास हिंदू महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है. इसका प्रमुख कारण है वट सावित्री व्रत, जो इस मास की अमावस्या को मनाया जाता है. विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं.
क्या है इस दिन की पौराणिक मान्यता?
मान्यता है कि इसी दिन देवी सावित्री ने अपने तप से यमराज को प्रसन्न कर अपने पति सत्यवान के प्राण लौटा लिए थे. यह व्रत सावित्री की अदम्य निष्ठा और तप का प्रतीक माना जाता है. तभी से सुहागिन महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति के जीवन और सौभाग्य के लिए यह व्रत करती आ रही हैं.
कब है व्रत, और क्या हैं इस बार के शुभ योग?
इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन भरणी नक्षत्र के साथ शोभन और अतिगण्ड योग का संयोग बन रहा है. पूजन के लिए तीन विशेष मुहूर्त बनेंगे:
प्रथम मुहूर्त: प्रातः 8:52 से 10:25 तक (शुभ चौघड़िया)
द्वितीय मुहूर्त: 11:51 से 12:46 तक (अभिजीत मुहूर्त)
तृतीय मुहूर्त: अपराह्न 3:45 से 5:28 तक (शुभ योग काल)
क्यों की जाती है वट वृक्ष की पूजा?
हिंदू धर्म में वट वृक्ष यानी बरगद का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसकी जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव का वास होता है. इसलिए इस वृक्ष की पूजा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
व्रत करने की विधि क्या है?
विवाहित महिलाएं इस दिन प्रातः स्नान कर सोलह श्रृंगार करती हैं. फिर बिना अन्न और जल ग्रहण किए, वट वृक्ष की पूजा करती हैं. व्रत की परंपरा के अनुसार, वे वट वृक्ष के चारों ओर सात बार कच्चा सूत लपेटती हैं.
सात बार धागा क्यों?
सात बार सूत लपेटने की परंपरा के पीछे मान्यता है कि यह पति-पत्नी को सात जन्मों तक एक सूत्र में बांध देता है. साथ ही पति के जीवन में आने वाली आपदाओं से रक्षा करता है.
वट सावित्री की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे. यमराज ने न केवल सत्यवान को जीवनदान दिया, बल्कि सावित्री को सौ पुत्रों का वरदान भी दिया. तभी से वट वृक्ष की पूजा इस व्रत का अभिन्न अंग बन गई है.
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