उदित वाणी, जमशेदपुर: देशभर में बिखरी प्राचीन जनतातीय चिकित्सा पद्धति अब के स्टॉल भी यहां थे. मुख्य प्रवेश द्वार से घुसने के साथ बायीं ओर कतारबद्ध झारखंड समेत विभिन्न राज्यों की प्राचीन जनजातीय औषधीय प्रणाली और दवाओं के संबंध में जानकारी लोग लेते रहे.
टाटा स्टील द्वारा अब इन पद्धतियों को दस्तावेजों में सहेजने की तैयारी की जा रही है. इनमें झारखंड की प्राचीन होड़ोपैथी भी शामिल है. के दस्तावेजीकरण के लिए टाटा स्टील फाउंडेशन देशभर के वैद्यों की सूची तैयार करा रहा है. इसके लिए नेशनल हिलर्स एसोसिएशन के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया जारी है. यह जानकारी टाटा स्टील फाउंडेशन के एक अधिकारी ने दी.
उन्होंने बताया कि टाटा स्टील फाउंडेशन ने अनौपचारिक रूप से राष्ट्रीय हिलर्स एसोसिएशन का गठन किया है.यह एसोसिएशन तीन वर्षों से देश के विभिन्न राज्यों के वैद्यों की सूची बना रहा है. रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया जारी है.
दरअसल, भारत की चिकित्सा पद्धति दुनिया की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में से एक है. हालांकि, अब तक इसका व्यापक विस्तार नहीं हो पाया है.
पारंपरिक इलाज करने वालों के दस्तावेज अब होंगे उपलब्ध
टाटा स्टील फाउंडेशन ने वैद्यों के दस्तावेजीकरण के लिए बेंगलुरु स्थित ट्रांस डिसिप्लीनरी यूनिवर्सिटी (टीडीयू) से देश के सात राज्यों से 30 वैद्यों को दस्तावेजीकरण के लिए मास्टर प्रशिक्षण दिलवाया है.
इन वैद्यों ने अब तक मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु में 110 हिलर्स को दस्तावेजीकरण के लिए प्रशिक्षित किया है. देश के सात राज्यों की लगभग 150 हिलर्स पद्धति का दस्तावेजीकरण किया जा चुका है. ये दस्तावेज विभिन्न जनजातीय भाषाओं में हैं. इसका अनुवाद किया जा रहा है.यहां पहुंचे डॉ गजेंद्र मध्य प्रदेश के जबलपुर संभाग में बैंगा और गोंड जनजातियों पर काम कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि टाटा स्टील फाउंडेशन के अलावा देश की कई कंपनियां भी जड़ी-बूटियों के दस्तावेजीकरण में लगी हुई हैं. इनमें दवा कंपनी पिरामल फाउंडेशन भी शामिल है. यह आयोजन भारत में आदिवासियों पर सबसे बड़े प्लेटफार्मों में से एक है, आदिवासी कलाकारों, बुनकरों और कारीगरों, संगीतकारों, मरहम लगाने वालों, घर के रसोइयों, विद्वानों, फिल्म निर्माताओं और कलाकारों के एक समूह को एक साथ एक मंच पर आदिवासी का जश्न मनाने का उत्सव बन चुका है. पिछले दो वर्ष यह आयोजन कोविड की वजह से ऑनलाइन हुआ था.
पैरों में कील ठोककर दर्द भगाते हैं असम के ये वैद्य, हीलरों की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति रही आकर्षण का केन्द्र
गोपाल मैदान बिष्टुपुर में चल रहे टाटा स्टील के संवाद में जनजातीय प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति आकर्षण का केन्द्र रही. लाइफ स्टाइल से संबंधित डायबिटीज बीमारी के इलाज की बात हो या किसी तरह के दर्द के निवारण की.
हर मर्ज का इलाज यहां पर है. असम के सुकोमल देवड़ी नल ट्रीटमेंट यानि कील ठोक कर दर्द का इलाज करते हैं. वे पैरों पर छेनी और हथौड़ी इस तरह चलाते हैं, जैसे लोहे पर चला रहे हो. लेकिन कमाल की बात है कि इस मार से मरीज को कोई दर्द नहीं होता. सुकोमल बताते हैं-आजकल गठिया की आम समस्या है.
एक उम्र के बाद यह समस्या होती है और चलना मुश्किल हो जाता है. हम कील पद्धति से इलाज करते हैं और शरीर की धमनियों से अशुद्ध रक्त को बाहर निकाल देते हैं. इससे दर्द से तुरंत राहत मिलती है. इस तकनीक से इलाज करा रहे शुभेन्दू मजूमदार ने कहा कि काफी राहत मिली है. चलना मुश्किल हो गया था. मेले में जब देखा तो इनसे इलाज कराया.
गड़चिरौली के वैद्यों ने बनाई डायबिटीज निवारण की चूर्ण
महाराष्ट्र के गड़चिरौली से आए वैद्यों ने डायबिटीज की बीमारी का पाउडर बना रखा है. बताया-सुबह और शाम इसके सेवन से डायबिटीज कन्ट्रोल रहता है. मधुमेह नाशक इस चूर्ण के वैद्य हनुमंत विठ्ठल नरोटे हैं.
इसी तरह से राजस्थान से आए सुंदर लाल और अमृत लाल ने बताया कि वे शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाएं लाए हैं. गिलोय की बनी दवाईयां कई बीमारियों के निवारण में काम आती है. राजस्थान के प्रतापगढ़ से आए इन हीलरों ने कहा कि कोरोना के दौरान इन दवाईयों की काफी मांग रही और लोगों ने इससे लाभ उठाया.
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