उदित वाणी, जमशेदपुर: नई दिल्ली में सम्पन्न इंटक वर्किंग कमेटी की मीटिंग में देश भर के इंटक नेताओं ने केन्द्र सरकार द्वारा चार लेबर कोड (श्रम संहिता) के लागू किए जाने को लेकर चर्चा की. चर्चा इस बात पर हुई कि क्या केन्द्र सरकार चारों श्रम संहिता को एक साथ लागू करेगी या फिर एक-एक करके. नेताओं का कहना था कि अगर चारों श्रम संहिता एक साथ लागू की गयी तो इसे धरातल पर उतरने में समय लगेगा और इससे कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं. ऐसे में इन श्रम कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने पर सहमति बनी.
इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजीवा रेड्डी ने बताया कि सरकार ने वर्तमान में जारी 29 श्रम कानूनों को खत्म कर उसे चार लेबर कोड में बांट दिया है, लेकिन चारों लेबर कोड में कई ऐसे बुनियादी बदलाव किए गये हैं जो श्रमिकों पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे. रेड्डी ने बताया कि केन्द्र सरकार ने औद्योगिक संबंध, मजदूरी (वेज), सामाजिक सुरक्षा और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ को लेकर चार श्रम संहिता बनाई हैं, जिसे अधिकतर राज्यों ने भी अपनी जरूरत के हिसाब से बदलाव किया है.
लेकिन अभी तक केन्द्र सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि ये चारों लेबर कोड एक साथ लागू होंगे या एक-एक करके. उन्होंने बताया कि वेज कोड में प्रावधान है कि अब कर्मचारियों का बेसिक और डीए 50 फीसदी से पार नहीं होगा. अगर 50 फीसदी के पार जाएगा तो वह वेतन का हिस्सा होगा. इससे कर्मचारियों के पीएफ में पैसे तो ज्यादा जमा होंगे, मगर इन हैंड्स सैलरी कम हो जाएगी. ऐसे में कर्मचारियों को घर चलाने में मुश्किल आ सकती है.
बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही
वर्किंग कमेटी की बैठक में इस बात पर गंभीरता से चर्चा हुई कि देश में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है और केन्द्र सरकार कुछ नहीं कर पा रही. इससे नौजवानों को रोजगार नहीं मिल रहा है. सीएमआईई के आंकड़े के अनुसार अप्रैल 2022 में बेरोजगारी दर 7.83 फीसदी थी. शहरी बेरोजगारी दर 9.22 प्रतिशत जबकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.18 फीसदी थी. सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा और राजस्थान जैसे प्रदेशों में है.
हरियाणा में बेरोजगारी दर 34.5 प्रतिशत और राजस्थान में 28.8 प्रतिशत बेरोजगारी दर है. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 45 करोड़ लोग गैर संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जो कुल श्रम शक्ति का 90 फीसदी है. इसमें से 50 फीसदी वर्क फोर्स यानि लगभग 22 करोड़ लोगों की मासिक आय केवल चार हजार से आठ हजार के बीच है.
यही नहीं सबसे गंभीर बात यह कि देश में 90 करोड़ ऐसे लोग है, जो रोजगार के लिए उपयुक्त हैं और उनकी उम्र लीगली सही है, लेकिन इसमें से आधे यानि 45 करोड़ लोगों के पास कोई काम नहीं है. वे चाहकर भी भारतीय अर्थव्यवस्था में अपनी भू्मिका अदा नहीं कर पा रहे. सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में जितने लोग बेरोजगार है, उतनी आबादी अमेरिका और रूस की है.
श्रम भागीदारी में गिरावट इसलिए हो रही है क्योंकि लोगों के पास काम नहीं है. मीटिंग में कहा गया कि जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई तो हर साल 2 करोड़ नये रोजगार देने की बात कही. इन 8 साल में 16 करोड़ रोजजार का सृजन होना चाहिए था. लेकिन नये रोजगार का सृजन तो नहीं हुआ, इन आठ सालों में 25 करोड़ रोजगार खत्म हो गये. केवल कोविड महामारी के दौरान 6 लाख लोगों की नौकरियां छिन गई.
देश में तेजी से बढ़ रही विषमता
वर्किंग कमेटी की मीटिंग में देश में अमीरी और गरीबी की चौड़ी होती खाई पर भी गंभीरता से विचार किया गया. बैठक में बताया कि विषमता के मामले में भारत, दुनिया में मोस्ट अनइक्वल कंट्री के रूप में उभरा है. वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में राइजिंग पुअर और एफ्लुएंट इलिट के बीच विषमता तेजी से बढ़ रही है. देश के 10 फीसदी अमीरों के पास 65 फीसदी संसाधनों पर कब्जा है.
टॉप एक फीसदी लोगों के पास 22 फीसदी संसाधन यानि एक चौथाई संसाधन है. कमेटी में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई कि देश ट्रान्सपेरेंसी इन्डेक्स में लगातार नीचे जा रहा है.
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