उदित वाणी, जमशेदपुर: बिष्टुपुर स्थित श्रीलेदर्स शोरूम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती के अवसर पर एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई. समाजसेवी और श्रीलेदर्स के पार्टनर शेखर डे ने नेताजी के अदम्य साहस और प्रेरणादायक विचारधारा की प्रशंसा करते हुए कहा कि सुभाष चंद्र बोस केवल स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, बल्कि साम्राज्यवाद और अन्याय के खिलाफ संघर्ष का अद्वितीय प्रतीक थे. उन्होंने घुटने टेककर आजादी मांगने की जगह उसे छीनने का संकल्प लिया था.
कार्यक्रम की शुरुआत और मुख्य बातें
कार्यक्रम का शुभारंभ नेताजी की तस्वीर पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ. श्रद्धांजलि सभा में शेखर डे के अलावा एस चटर्जी, प्रतिलेखा राय, परेश कुमार नंदी, भास्कर मित्रा और श्रीलेदर्स के कर्मचारी मौजूद थे. मंच संचालन मीरा शर्मा ने किया.
महिलाओं की मुक्ति और सैन्य नेतृत्व पर जोर
शेखर डे ने कहा कि आजादी के कई वर्षों बाद भी महिलाओं पर कई पाबंदियां हैं. लेकिन नेताजी ने वर्षों पहले इन पाबंदियों को तोड़ते हुए महिलाओं को अस्त्र-शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देकर उनकी स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया. उन्होंने महिलाओं की एक फौज तैयार कर यह साबित किया कि समाज में हर वर्ग का योगदान अहम है.
नेताजी की नीतियां और लौहनगरी से जुड़ी यादें
सुभाष चंद्र बोस ने 1928 में जमशेदपुर की यात्रा के दौरान मजदूरों के हित में सुझाव दिए थे, जिन्हें टाटा स्टील ने बाद में लागू किया. शेखर डे ने बताया कि नेताजी ने स्वतंत्र भारत के विकास की एक ठोस रूपरेखा तैयार की थी. यदि उनकी नीतियों को आज भी अमल में लाया जाए तो परिस्थितियां काफी बेहतर हो सकती हैं.
सही मूल्यांकन की आवश्यकता
शेखर डे ने कहा कि आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का सही मूल्यांकन नहीं हुआ है. उनके विचार और नीतियां न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायक हैं. समारोह में उपस्थित सभी ने नेताजी के विचारों को आत्मसात करने और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया.
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