उदित वाणी, जमशेदपुर: पर्यटन, कला, संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग झारखंड सरकार और पथ पीपुल्स एसोसिएशन फॉर थियेटर के संयुक्त तत्वावधान में चल रही 21 दिवसीय नि:शुल्क नाट्य कार्यशाला का सातवां दिन वैचारिक और रचनात्मक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध रहा.
“हम नाटक किसके लिए करें?” — अमिताभ घोष का विचारोत्तेजक सत्र
कार्यशाला की शुरुआत जमशेदपुर के प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ अमिताभ घोष के सत्र से हुई, जिन्होंने “कला और जीवन का अंतर्संबंध” विषय पर गहराई से संवाद किया. उन्होंने यह प्रश्न उठाया—”हम नाटक किसके लिए करें?” और समझाया कि नाटक केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत भी हो सकता है.
उन्होंने रंगमंच की सीमाओं, दर्शकों की बदलती मानसिकता और संसाधनों की कमी जैसे मुद्दों को संबोधित करते हुए कहा,“जहां मंच न हो, वहां भी नाटक हो सकता है—क्योंकि नाटक एक विचार है, एक दृष्टिकोण है.”उन्होंने प्रतिभागियों को चार समूहों में बाँटकर ‘क्यों, किसके लिए, कहां और कैसे’ जैसे बुनियादी प्रश्नों पर आधारित लघु नाटकों का मंचन करवाया. हर प्रस्तुति के बाद उन्होंने उस नाटक की सामाजिक और भावनात्मक गहराई की व्याख्या की.
संघर्ष से रचना तक—मोहम्मद निजाम का संवाद
द्वितीय सत्र में मुख्य प्रशिक्षक मोहम्मद निजाम ने “कलाकार का सामाजिक उत्तरदायित्व” विषय पर प्रेरणादायक बातचीत की. उन्होंने प्रतिभागियों से कहा: “एक सच्चा कलाकार अपने जीवन के संघर्षों को रचना में बदलने की शक्ति रखता है.” उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए यह बताया कि रंगकर्मी न केवल दर्शकों को आनंद देता है, बल्कि समाज को आईना भी दिखाता है.
सौरभ सुमन झा की कहानी—मेहनत और ईमानदारी से मिलती पहचान
इस सत्र में विशेष रूप से आमंत्रित पूर्व छात्र एवं फिल्मकार सौरभ सुमन झा ने भी अपनी यात्रा साझा की. उन्होंने कहा कि“मेहनत, धैर्य और ईमानदारी से ही कोई कलाकार पहचान बना सकता है. रंगमंच ही मेरी नींव है.”
प्रमुख विशेषताएँ जो इस दिन को खास बनाती हैं:
• अनुभवी कलाकारों और प्रशिक्षकों का मार्गदर्शन
• सामाजिक विषयों पर संवाद और प्रयोग
• समूह आधारित अभ्यास और मंचन
• आत्ममंथन और कलाकार के सामाजिक स्वरूप पर चर्चा
समाज से जुड़ता कलाकार
यह कार्यशाला केवल अभिनय की तकनीक नहीं सिखा रही, बल्कि प्रतिभागियों को एक संवेदनशील नागरिक और गहराई से सोचने वाले कलाकार के रूप में भी तैयार कर रही है.
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