उदित वाणी, जमशेदपुर: अब तक पंचायत चुनाव का रंग सिर्फ कुछ गांवों तक ही सिमटा रहता था, देश की राष्ट्रीय पार्टियां या फिर क्षेत्रीय दल, इसमें ज्यादा रूचि नहीं लेती थी.लेकिन बदलते वक्त के साथ ना सिर्फ चुनाव का तरीका बदला है, बल्कि गांव की राजनीति में सियासी दलों का दखल भी बढ़ गया है, या फिर ये कहें कि राजनीति दलों को पता है, कि अगर राज्य और देश की सत्ता पाना है, तो इन गांव की गलियों से गुजरना ही होगा. अब तक ग्रामीण स्तर पर लड़े जाने वाले पंचायत चुनाव में राजनीतिक दलों की रूचि ने गांव के सरकार के चुनाव की लड़ाई को और भी ज्यादा दिलचस्प बना दिया है. अब ना सिर्फ पंचायत चुनाव में राजनीतिक दल उम्मीदवारों को अपना समर्थन देती है, बल्कि अब तो खुलकर इसकी लड़ाई लड़ी जाती है। यही वजह है कि अब तक विधानसभा या फिर लोकसभा में दलगत वोटिंग होती थी, लेकिन ऐसा लगता है कि अब पंचायत के चुनाव में भी लोग ये देखकर वोट करने लगे हैं, कि कौन सा प्रत्याशी किस पार्टी का समर्थन करता है.
राजनैतिक दलों की सक्रियता से प्रचार का भी दिख रहा दम
पंचायत चुनाव में राजनीतिक दलों की एंट्री ने मानों पंचायत चुनाव की पूरी दिशा की बदलकर रख दी है. इस बार हो रहे पंचायत चुनाव में बेहद ही दिलचस्प नजारा देखने को मिल रहा है. क्योंकि इस बार लोग व्यक्ति से ज्यादा ये देखकर वोट कर रहे हैं, कि प्रत्याशी किस पार्टी को समर्थन करता है. या फिर उसकी विचारधारा किस पार्टी से मेल खाती है. अब तक पंचायत चुनाव में प्रत्याशी की फोटो दिखती थी, लेकिन अब तो खुलकर प्रत्याशियों के ऑफिस में राजनीतिक दलों के दिग्गज सक्रिय दिख रहे हैं. मकसद साफ है कि गांव हो या फिर शहर, हर जगह के लोग किसी ना किसी दल का समर्थन करते हैं, और मौजूदा वक्त में तो गलि मोहल्ले में भी आपको सियासी तौर पर अलग-अलग पार्टियों के समर्थक मिल जाएंगे. यही वजह है कि अब प्रत्याशी पार्टी के नाम पर भी लोगों से समर्थन मांगती है. क्योंकि उन्हें पता है कि भले ही लोग उन्हें ना पसंद करें, लेकिन पार्टी की प्रतिष्ठा बचाने के लिए लोग जरूर वोट देंगे, जिसका फायदा उन्हें मिलेगा. वैसे कई सीटों पर एक-एक दल के दो तीन प्रत्याशियों के उतरने से भी स्थिति रोचक है. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि प्रत्याशी को देखकर वोट देते हैं और भले ही आज के समय में गांव की सरकार चुनने में पार्टी का नाम देखा जाता हो, लेकिन आज भी सबसे ज्यादा ऐसे लोग ही जीतते हैं, जो कि किसी पार्टी से ताल्लुक नहीं रखते हैं, हां वो अलग बात है, कि चुनाव जीतने के बाद भले ही वो लोग किसी खास दल का समर्थन करने लगें.
पंचायतों में दिख रहा अलग सा नजारा
खैर, इस बार सरजामदा व हलुदबनी पंचायत में इस बार भी कुछ ऐसा ही नजारा दिख रहा है, जहां लोग ये देखकर वोट कर रहे हैं, कि प्रत्याशी किस पार्टी का समर्थन करता है. जबकि कई लोग ऐसा कहते हैं, कि प्रत्याशी भले ही ठीक ना हो, लेकिन पार्टी के नाम पर तो वोट देना ही होता है, क्योंकि इससे पार्टी मजबूत होती है. यही वजह है कि आजकल देश के ज्यादातर राज्यों में होने वाले पंचायत चुनाव में राजनीतिक दलों की एंट्री हो चुकी है.ये बदलते वक्त के साथ बदलती सियासत का भी नतीजा है, कि जिस पंचायत चुनाव के चर्चे सिर्फ गांवों तक सिमटी रहती थी, आज उसकी चर्चा देश दुनिया में हो रही है.
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