जेएनएसी को दिखाया आईना, दुकानदारों की मजबूरी को लाया सामने, डीसी से हस्तक्षेप की लगाई गुहार
उदित वाणी, जमशेदपुर: टाटा कंपनी द्वारा जमशेदपुर के बाजारों में आवंटित दुकानों से जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति (जेएनएसी) द्वारा भाड़ा बढ़ाए जाने के फैसले को सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ने मनमाना, अतार्किक व अनुचित करार देते हुए इसका कड़ा विरोध सिंहभूम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के उपाध्यक्ष (पीआरडब्ल्यू) मुकेश मित्तल ने इस संबंध में पूरे तर्को के साथ बयान जारी कर स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास किया है.
800 गुणा बढ़ाया जाना सरासर गलत
मित्तल ने कहा है कि विगत कई वर्षों से जमशेदपुर के सैरात बाजारों में स्थित दुकानदार टाटा कंपनी को ही दुकान भाड़ा के साथ- साथ बिजली -पानी का चार्ज देते आये हैं. अचानक जेएनएसी द्वारा जून महीने के पहले हफ्ते में मई महीने के भाड़े का बिल 500 से 800 गुणा बढ़ाकर भेज दिया गया, जो सरासर गैरकानूनी, इरादतन, अन्यायपूर्ण, असंवैधानिक एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांच के खिलाफ है.
मालिक बदलने की नहीं दी जानकारी
मित्तल ने कहा है कि विगत कई वर्षों से दुकानदार टाटा कंपनी को ही भाड़ा देते हुए आये हैं और टाटा कंपनी को ही मकान मालिक समझते हैं. टाटा कंपनी ने बाज़ार की दुकानें जेएनएसी को स्थानांतरित कर दी है और अब दुकान का मालिक टाटा कंपनी नहीं बल्कि जेएनएसी है. उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या इसकी सूचना/अधिसूचना अखबारों, पर्चे या ध्वनि-विस्तारक यंत्र द्वारा दुकानदारों को दी गई?
रेंट कंट्रोल एक्ट का उल्लंघन तो नहीं
मित्तल ने यह भी सवाल उठाया है कि 500 से 800 गुणा यकायक भाड़ा बढ़ाना, क्या रेंट कंट्रोल एक्ट का उल्लंघन नहीं है?
उन्होंने यह भी जानना चाहा है कि भाड़ा बढ़ाने से पहले क्या जेएनएसी द्वारा दुकानदारों को बताया गया कि किराया बढ़ाने के एवज में दुकानदारों को क्या-क्या सुविधाएं दी जाएगी? उनका यह भी सवाल है कि आज के बाजार भाव के हिसाब से भाड़ा लगाने से पहले क्या इस बात पर ध्यान दिया गया कि दुकानें 50-70 साल पुरानी हैं और किरायेदार भी लगभग 70 साल पुराने हैं?
जेएनएसी द्वारा 70 साल पुरानी दुकानों का आज के बाज़ार भाव के हिसाब से भाड़ा फिक्स करने से पहले, क्या बाज़ार के दुकानदारों की जनसुनवाई की गई या उन्हें पार्टी बनाया गया? क्या भाड़ा बढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि कौन सी दुकानें मेन रोड की हैं और कौन अंदर गली की हैं?
चैंबर उपाध्यक्ष ने जानना चाहा है कि क्या भाड़े के दुकानदार बाज़ार मूल्य के हिसाब से भाड़ा देने के बाद, सब लीज की जमीन बनी दुकानों के दुकानदारों से बाजार में बराबरी कर पाएंगे? उन्होंने बताया है कि बाज़ार की भाड़ा दुकानों के अगल-बगल स्थित सब लीज की जमीन पर बनी दुकानों से केवल मालगुज़ारी के एवज में म्यूनिसिपल टैक्स लेने का प्रावधान है, जो केवल 50-150 रुपये मात्र है.
क्या कर्ज लेकर भाड़ा देंगे दुकानदार
मित्तल का कहना है कि कई-कई दुकानों का भाड़ा तो इतना बढ़ा दिया गया है कि दुकानदार की मासिक आमदनी भी इतनी नहीं कि भाड़ा देने में बाद वे अपना घर खर्च चला सकें. क्या दुकानदार कजऱ् लेकर जेएनएसी को भाड़ा देंगें.
सरकार को खड़ा किया कटघरे में
मित्तल ने कहा कि जिला प्रशाशन द्वारा इस प्रकार का जैरजिम्मेदारन अमानवीय निर्णय लेना, क्या पूरी सरकार को कटघरे में खड़ा करने के समान नहीं है?
7000 दुकानदारों की जीविका से खेला गया
मित्तल ने कहा कि इस प्रकार के जनविरोधी फैसले से पूरे व्यापारिक वर्ग में रोष एवं भय व्याप्त है और यह कदम लगभग 7000 दुकानदारों के परिवार की जीविका से खेलने के समान है. इस एकतरफा फैसले का पूरा व्यापारी वर्ग जोरदार ढंग से विरोध करता है और इस बढे हुए कियारे को देने में असमर्थ है.
मित्तल ने जिले की उपायुक्त से निवेदन किया है कि जेएनएसी द्वारा मनमाने ढंग से अत्याधिक भाड़ा बढ़ाया जाने एवं 70 साल पुरानी दुकानों का आज के बाज़ार भाव के हिसाब से भाड़ा फिक्स करने के फैसले पर पुनर्विचार कर दुकानदारों को निजात दिलाएं ताकि लगभग 7000 दुकानदारों की जीविका से खिलवाड़ ना हो और व्यापारी-प्रशासन के बीच सामंजस्य एवं शांति व्यवस्था बनी रहे.
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