उदित वाणी, जमशेदपुर: जुगसलाई में मारवाड़ी समाज की महिलाओं ने होलिका दहन से पूर्व एक खास पूजा का आयोजन किया. इस दौरान नवविवाहिताओं और समाज की महिलाओं ने गोबर से बना बड़कुला बनाकर होलिका की पूजा की. यह पूजा मारवाड़ी समाज की पारंपरिक रीति-रिवाजों का हिस्सा है, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत की कामना की जाती है.
मारवाड़ी समाज की पारंपरिक पूजा
मारवाड़ी समाज में होलिका पूजा की परंपरा विशेष होती है. इस दौरान महिलाएं गोबर से बना बड़कुला तैयार करती हैं, जिसे होलिका की पूजा में उपयोग किया जाता है. झारखंड की प्रसिद्ध मंगल पाठ वाचिका और भजन गायिका सुनीता भारद्वाज ने बताया कि होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक होता है.
नवविवाहिताओं के लिए विशेष पूजा
मारवाड़ी समाज में शादी के बाद की पहली होली बहुत खास मानी जाती है. नवविवाहित महिलाएं इस दिन अपने मायके में होली मनाती हैं और गणगौर की पूजा करने के बाद ससुराल वापस जाती हैं. इस अवसर पर खास पकवानों का आयोजन किया जाता है, जिसमें मूंगदाल का हलवा, काठी दाल और चावल प्रमुख होते हैं. नवविवाहित महिलाएं इस दिन ठंडी अग्नि की पूजा करती हैं और चार फेरे लेकर अपने परिवार के सुखमय जीवन की कामना करती हैं.
होलिका दहन की पारंपरिक प्रक्रिया
मारवाड़ी समाज के दंपती राजस्थानी पहनावे में होलिका दहन स्थल पर पहुंचते हैं. सभी के हाथ में पूजा की थाली होती है, जिसमें बड़कुला की माला, गोबर का बना ढाल, डंडे में बंधी होड़ा गेहूं की बाली होती है. जैसे ही आचार्य वैदिक मंत्रोच्चार के साथ होलिका में अग्नि प्रज्वलित करते हैं, वहां उपस्थित श्रद्धालु भक्त प्रह्लाद की जय, बुराई पर अच्छाई की जय का जयकारा लगाते हैं. इसके बाद दंपती होलिका को गोबर से बनी बड़कुला की माला सौंपते हैं.
महिलाओं द्वारा पूजा और व्रत का महत्व
इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और परिवार के सुखमय जीवन के लिए पूजा करती हैं. इसके साथ ही वे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस दिन व्रत भी रखती हैं. यह पूजा समाज में रिश्तों की मजबूती और सुख-शांति की कामना करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.
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