
बिरसा मुंडा पर लिखी अपनी पुस्तक की 500 कॉपी मुफ्त में बाटेंगे, ताकि गांव के बच्चे बिरसा मुंडा के योगदान को जान सके
उदित वाणी जमशेदपुर: लोयोला स्कूल के छात्र रहे मशहूर लेखक और भाजपा नेता तुहिन सिन्हा इस साल स्वंतंत्रता दिवस के दिन बिरसा मुंडा के जन्मस्थान झारखंड के उलिहातू गांव में आज़ादी का महापर्व मनाएंगे और उनके परिजनों, वंशजों तथा गांव वालों के साथ समय गुजारेंगे. उन्होंने यह जानकारी एक ट्वीट के जरिए दी है. तुहिन ने अपने ट्वीट में लिखा है कि इस अवसर पर वे गांव के बच्चों को बिरसा मुंडा पर लिखी अपनी पुस्तक की 500 कॉपीज मुफ्त में वितरित करेंगे. यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि आज के आदिवासी बच्चे, भारत के इतिहास में अपने पूर्वजों के महत्वपूर्ण योगदान से पूरी तरह अवगत हो. इस अभियान में कर्तव्यपथ नाम की एनजीओ मदद करेगी, जो शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है. उल्लेखनीय है कि तुहिन ने अंकिता वर्मा के साथ मिलकर बिरसा मुंडा पर यह पुस्तक लिखी है. बकौल तुहिन, जब देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला विराजमान है, तब यह सही समय है जब ऐसे भूला दिए गये नायकों की सच्ची गाथा सामने लाई जाय. हर साल बिरसा मुंडा की जन्म जयंती और पुण्य तिथि पर अचानक उनके गांव के विकास की योजनाएं घोषित होती है और अगले कुछ हफ्तों में ऐसी योजनाएं गायब हो जाती है. इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ है और इस योजना का हाल भी वही होगा .
बिरसा मुंडा के गांव में खुलेगा वक्रंगी सहायता केंद्र
तुहिन ने बताया कि बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि पर उनके गांव वासियों को जो वादा किया था , उसे पूरा करने का समय आ गया है. बिरसा मुंडा के जन्मस्थल उलिहातु गांव में 15 अगस्त को बिरसा मुंडा पर लिखी पुस्तक के वितरण का प्रयोजन, गरीबों के आर्थिक समावेश के क्षेत्र में कार्य करने वाली कंपनी वक्रंगी करेगी. तुहिन ने बताया कि पिछले सप्ताह वक्रंगी के एम डी दिनेश नंदवाना जी से भेंट हुई जिसमें उन्होंने इस पहल का संपूर्ण समर्थन किया. साथ ही आने वाले समय में उलिहातु गांव में वक्रंगी सहायता केंद्र खोलने का भी निर्णय लिया. यही नहीं इस नेक अभियान में झारखंड के प्रतिभाशाली युवा नेता मृत्युंजय भी सपोर्ट कर रहे हैं. वे अपनी संस्था कर्तव्यपथ के माध्यम से गरीब आदिवासी बच्चों की शिक्षा दे रहे हैं. उलिहातु गांव के साथ साथ रांची के भी एक स्कूल में तथा एक आदिवासी बस्ती में बच्चों के बीच बिरसा मुंडा के जीवन के विशेष पहलू पर चर्चा होगी. साथ ही रांची प्रेस क्लब में भी एक संवाद आयोजित किया जाएगा. 15 अगस्त को अपने घर पर तो तिरंगा लहराये ही, पर घर पर स्वंतंत्रता दिवस बिताने के बजाए , हम भारत के वीर जनजातीय योद्धाओं के वंशजों का जीवन बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे.
बिरसा मुंडा के जीवन को सामने लाती है पुस्तक यह पुस्तक महान आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जीवन को हमारे सामने लाती है. पुस्तक का उद्देश्य इस कम ज्ञात आदिवासी क्रांतिकारी की भूमिका को सामने लाना है, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जाने-माने लेखक और स्तंभकार आशीष चांदोरकर ने इस पुस्तक की समीक्षा में कहा है कि यह पुस्तक एक आदिवासी नेता का ईमानदार चित्रण है कि कैसे एक कमजोर युवा लड़का, भगवान बिरसा मुंडा बन गया. यह एक ऑफबीट किताब है, जिसमें भारतीय इतिहास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंश को शामिल किया गया है.
आदिवासी समुदाय को संगठित किया तुहिन सिन्हा ने कहा कि सच्ची घटनाओं के आधार पर लिखी गई पुस्तक बिरसा मुंडा को एक श्रद्धांजलि है, जिन्होंने बहुत ही अल्प जीवन में आदिवासी समुदाय को संगठित किया, जबरन धर्मांतरण के खिलाफ विद्रोह किया, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज और इसके लिए लड़ते हुए मर गया. पुस्तक की सह लेखक अंकिता वर्मा ने कहा कि बिरसा मुंडा एक शेर-दिल योद्धा, एक मरहम लगाने वाले और एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे. पुस्तक का उद्देश्य पाठकों के लिए इस क्रांतिकारी की कहानी लाना है, जिसने भय और असहायता के सामने आशा, धैर्य और दृढ़ संकल्प का प्रतिनिधित्व किया.
बिरसा मुंडा को भारत रत्न देने के लिए पीएम को लिख चुके हैं पत्र तुहिन सिन्हा ने बिरसा मुंडा को भारत रत्न की उपाधि देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है. पीएम को लिखे अपने पत्र में तुहिन ने कहा था कि जो झारखंड राज्य, 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया था, अभी तक अपनी वास्तविक क्षमता का अहसास नहीं कर पाया है. समृद्ध खनिज संसाधनों के बावजूद इस प्रदेश का विकास नहीं हो पाया है. राज्य की विकास योजनाओं में एक मजबूत सांस्कृतिक आख्यान बुनने से इस परिवर्तन की शुरुआत करने में मदद मिल सकती है. यही नहीं आदिवासी की जगह वनवासी शब्द का इस्तेमाल हो. हम 2024 में बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती मनाने के लिए तैयार हैं, समय आ गया है कि बिरसा मुंडा की कर्मभूमि भारत की विकास गाथा में सबसे आगे हो. तुहिन कहते हैं-झारखंड के गठन के 22 साल बाद भी राज्य विभिन्न मानकों पर पिछड़ा हुआ है. झारखंड को एक विशिष्ट ब्रांड पहचान की आवश्यकता है और बिरसा मुंडा एक ऐसी शख्सियत है, जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक उत्थान का माध्यम बन सकते हैं.
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