पहले रेडियो सुनने के लिए सरकार से लाइंसेस लेना पड़ता था
50 साल से सुन रहे हैं रेडियो, आज भी रेडियो सुनना उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा है
उदित वाणी, जमशेदपुर: 20 अगस्त को राष्ट्रीय श्रोता दिवस है. तो चलिए आज हम शहर के ऐसे एक श्रोता से मिलाते हैं, जिनकी पहचान रेडियो मैन के रूप में है. उलियान, कदमा के चिन्मय महतो इस दिन रेडियो की प्रदर्शनी लगाते हैं, जिसमें वे 450 से ज्यादा रेडियो को प्रदर्शित करते हैं. ये रेडियो सेट पिछले 70 साल के हैं.
इन रेडियो को देखना, अतीत की यादों को फिर से जीने जैसा होता है. गाइड इंटरनेशनल रेडियो लिस्नर्स क्लब की ओर से आयोजित होने वाली यह प्रदर्शनी अब संग्रहालय का रूप ले चुका है. बकौल चिन्मय महतो, हर साल की तरह इस साल भी 20 अगस्त श्रोता दिवस के अवसर पर रेडियो प्रदर्शनी होगी. यह प्रदर्शनी निर्मल महतो रोड, उलियान, कदमा में लगेगी. प्रदर्शनी का मकसद यह है कि नई पीढ़ी के बच्चे और युवा रेडियो के बारे में जान सके. भारत के प्रसारण केन्द्र के अलावा मैं करीब 20-25 विदेशी प्रसारण केन्द्र से जुड़ा हुआ हूं. मसलन रेडियो जापान, वॉयस ऑफ जर्मनी, वॉयस आफ अमेरिका, फ्रांस ईनटरनेशनल, रोमानिया इंटरनेशनल. इन सभी केन्द्रों से प्राप्त सामग्रियों को भी प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया जाएगा.
बर्मा से रेडियो लाए थे पिता चिन्मय ने बताया कि वे बचपन से रेडियो से प्रसारित कार्यक्रम सुन रहे हैं. रेडियो सुनना उनका शौक है. पिछले 50 सालों से रेडियो सुन रहे हैं. दरअसल मेरे पिता स्वर्गीय बलराम महतो, इंडियन एयर फोर्स में थे. बर्मा (वर्तमान म्यंमार) से एक रेडियो सेट खरीद कर लाए थे. बस क्या था. दिन रात रेडियो कार्यक्रम सुनने लगा. 5 साल उम्र रहा होगा. चुपके-चुपके सुना करता था. रेडियो कार्यक्रम सुनने के लिए हर शाम मुहल्ले के करीब 500 लोगों का भीड़ जमा हुआ करता था. 10 रूपए सालाना था रेडियो का लाइसेंस फीस उस समय रेडियो सुनने के लिए केन्द्र सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था. महतो बताते हैं- पिताजी, रेडियो के लाइसेंस को रिनुअल करने के मुझे बिष्टुपुर पोस्ट ऑफिस भेजा करते थे.
लाइसेंस आजकल के पासपोर्ट जैसा था. सालाना शुल्क 10 रूपए हुआ करता था. वार्षिक शुल्क जमा करने पर एक बड़ा साइज का स्टाम्प चिपकाया जाता था. फिर आपको साल भर रेडियो सुनने की अनुमति मिलती थी. 1980 के बाद लाइसेंस को रद्द कर मुफ्त कर दिया गया. रेडियो सिलोन पर नाम आना काफी सम्मान की बात थी रेडियो सिलोन कार्यक्रम सुनना और वहां से श्रोताओ के नामों का घोषणा होना बहुत ही गर्व की बात हुआ करती थी. श्रोता जगत में इसे बहुत ही आदर और सम्मान के साथ देखा जाता था. मेरे जीवन का सबसे स्मरणीय दिवस था, जब डौचे वेले यानि द वायस ऑफ जर्मनी से संदेश आया कि आप हमारे बहुत ही पुराने और नियमित श्रोता है. आपको सम्मानित किया जाएगा. आपको कोलकाता स्थित जर्मन कॉन्सुलेट आना है. यह बात 1995 की है.
प्रथम रेडियो प्रसारण के उपलक्ष्य में मनाते हैं यह दिवस
भारतवर्ष में 20 अगस्त 1921 को प्रथम रेडियो प्रसारण की शुरीआत हुई थी. बाद में 20 अगस्त को रेडियो श्रोता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा गया. इस रोज भारत के कोने- कोने में श्रोता सम्मेलन का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रोता एक-दूसरे से मिलते थे. झारखंड में श्रोता सम्मेलन की शुरुआत 1979 मे धनबाद से हुई. इसमें देश भर के पांच हजार श्रोता भाग लिए थे. इसी तरह से जमशेदपुर में भी रेडियो श्रोता संघ है.
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