अजय कुमार सिंह
उदित वाणी, जमशेदपुर : आम धारणा रही है कि कॉरपोरेट जगत मे अंग्रेजी का बोलबाला रहता है और इसी भाषा की मीडिया की खबरों पर इसके दिग्गज गौर करते हैं. लेकिन जमशेदपुर ने इस मिथक को तोडक़र हिंदी में अपनी कॉरपोरेट रिर्पोटिग से नेशनल पहचान बनाई है. देश के अग्रणी व प्रतिष्ठित औद्योगिक घरानों में से एक टाटा के संस्थापकों द्वारा बसाए गए जमशेदपुर में अनेक कंपनियां हैं जहां कारपोरेट खबरों की भरमार होनी चाहिए. लेकिन शहर की स्थापना के करीब आठ दशक तक हिंदी मीडिया को कारपोरेट जगत से खास भाव नहीं मिलता था. अंग्रेजी के पत्रकारों के साथ दोस्ती की बदौलत ही हिंदी के पत्रकारों का इस बिट पर काम चलता था.
लेकिन शहर से पहले नियमित हिंदी दैनिक उदित वाणी के लांच होने के बाद 22 अगस्त 1980 से कॉरपोरेट रिपोटिंग में भी बदलाव आया. उदित वाणी ने अपनी स्थापना के पहले दशक में जमशेदपुर की कंपनियों से जुड़ी खबरों पर फोकस किया. 1990 के दशक से इसने अपना फलक बढ़ाना शुरू किया. संयोग से उसी कालखंड में वैश्विक कारपोरेट हस्ती रूसी मोदी का टाटा घराने के प्रमुख सदस्य रतन टाटा से मतभेद हो गया. दोनों के बीच इस मतभेद के बाद टाटा घराने खासकर जमशेदपुर के कंपनी जगत मे ऐसी हलचल होने लगी जिसे जानने, भांपने व पाठकों तक पहुंचाने में उदित वाणी आगे रहने लगा. रूसी मोदी व टाटा घराने से जुड़ी कई खबरों को ब्रेक कर उदित वाणी ने जमशेदपुर की कॉरपोरेट रिर्पोटिंग को नेशनल पहचान दी. इसी तरह से उन दिनों यूनियन की खबरें भी एक नजर यानी संक्षिप्त खबरों की श्रेणी की हुआ करती थीं. देश में निजी क्षेत्र की सबसे धनी व बड़ी यूनियन टाटा वकर्स यूनियन से जुड़ी खबरों का लगातार प्रकाशन शुरू कर उदित वाणी से न सिर्फ नजीर पेश की बल्कि अन्य मीडिया संस्थाओं को भी इसे कवर करने के लिए एक तरह से बाध्य कर दिया. कई बार तो खुद को बड़े अंग्रेजीदां समझनेवाले कमर्शियल रिपोर्टर भी उदित वाणी के रिपोर्टरों से मदद लेते पाए गए क्योंकि उनके पास सही स्रोत तक पहुंचने का माद्दा नहीं था. लोकल रिपोर्टिंग का लाभ न केवल पाठकों को बल्कि बाहर के प्रकाशनों को भी हुआ.
इसी तरह जब ब्रिटेन की कंपनी कोरस के अधिग्रहण की बात चली और इसमें टाटा समूह ने दिलचस्पी लेनी शुरू की तो उदित वाणी ने कई ऐसी खबरें ब्रेक की जो बाद में नेशनल मीडिया की सुर्खियां बनीं. इसी तरह राडिया दलाली प्रकरण में उदित वाणी अंदरखाने की जानकारी सामने लेकर आया. शहर में नगर निगम की स्थापना को लेकर चले आंदोलन में पाठकों को सही तथ्य उदित वाणी ने उपलब्ध कराए और इस मामले में किसी तरह की पक्षधरता नहीं की. इसी तरह टाटा स्टील कारखाने में में 3 मार्च, 1989 को हुई फायर ट्रेजेडी को लेकर लोगों को पैनिक किए बगैर उदित वाणी ने तटस्थ रिपोर्टिंग कर मिसाल पेश की थी. शहर में खेल से जुड़े बड़े आयोजन कारपोरेट खासकर टाटा स्टील की ओर से ही होते रहे हैं. इंटरनेशनल क्रिकेट मैच, घरेलू मैच, सुपर सॉकर, आर्चरी, एथलेटिक्स, डेफ एंड डम्ब स्पोट्र्स, घुड़सवारी प्रतियोगिता, बॉस्केटबॉल आदि के बड़े मुकाबले टाटा स्टील की ओर से आयोजित होते रहे हैं और रोचक यह है कि ऐसे आयोजनों में स्पोट्र्स रिपोर्टर के साथ कॉरपोरेट रिपोर्टर की जुगलबंदी पत्रकारिता में नए तरह का आयाम पेश करती है क्योंकि खेलों का एक हिस्सा कारपोरेट वल्र्ड से भी जुड़ा होता है. बेशक, जमशेदपुर ने कॉरपोरेट रिपोर्टिंग की धार दी, उसने नेशनल फलक प्रदान किया लेकिन हाल के दिनों में पाठकों को उदित वाणी समेत अन्य जगहों से भी कॉरपोरेट से जुड़ी वैसी रोचक व सूचनात्मक खबरें नहीं मिल रही हैं जिनके फ्लेवर का कायल जमशेदपुर हो गया है. अब न तो कारपोरेट दिग्गजों के शीतयुद्ध के बारे में कुछ पता चल रहा और न ही यूनियन नेताओं के स्वार्थ की पूर्ति जानकारी सामने आ रही.
किस यूनियन नेता ने किस कोटे से कितनों को उपकृत कराया या क्या-क्या फायदा बटोरा इससे भी पाठक अनजान रहते हैं. यूनियन की अंदरुनी मीटिंग या उच्च प्रबंधन के साथ वार्ता की श्रमिकों से जुड़ीं ऑफ दी रिकार्ड बातें भी कोई नहीं जान बाता. लग रहा कि सबकुछ सेटिंग-गेटिंग से सहारे चल रहा. बीच-बीच में उदित वाणी इस धारणा को तोडऩे का प्रयास करता है. आदित्यपुर इलाके में उद्यमियों का आर्थिक दोहन करने में जुटे एक नेताजी और उनके आका की पोल खोल इस अखबार ने दिखाया कि उसके तेवर में कोई कमी नहीं आई है. टाटा वर्कर्स यूनियन के पिछले चुनाव से समय भी इस अखबार की धार देखने को मिली थी. लेकिन इसी से काम नहीं चलनेवाला. इसमें निरंतरता होनी चाहिए. उदित वाणी से आस है.
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