- उत्पादन बढ़ने के साथ ही प्रदूषण बढ़ने का खतरा भी बढ़ेगा
उदित वाणी, जमशेदपुर: जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन से निबटना उद्योगों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होने वाला है. उद्योगों के लिए एक तरफ उत्पादन बढ़ाने का दबाव है तो दूसरी ओर कार्बन उत्सर्जन कम करने की वैधानिक चुनौतियों भी. यही नहीं उद्योगों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध इस्तेमाल और उद्योग से निकलने वाले कचरे और प्रदूषण पर समाज भी रिएक्ट करेगा. ऐसे में उद्योगों के लिए कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने की चुनौतियां कितनी कारगर हो पाएगी, वह देखने लायक होगी. टाटा समूह के मुखिया एन चन्द्रशेखरन ने भी हाल ही में कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर जोर दिया है. उन्होंने 2045 तक कार्बन इमिशन को नेट जीरो करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और कहा है कि हमारा जोर सर्कुलर इकोनोमी पर रहेगा, ताकि हम संसाधनों को रिसाइकल कर उसे दोबारा इस्तेमाल करने योग्य बनाया जा सके.
शहर में प्रदूषण का जहर बढ़ने का खतरा ज्यादा
जमशेदपुर में टाटा समूह के उद्योगों के लिए यह चुनौतियां काफी है. जमशेदपुर एकमात्र शहर है, जहां पर शहर के बीचोबीच प्लांट है. ऐसे में उद्योग को और भी ज्यादा जवाबदेह और संवेदनशील बनना होगा. यही नहीं ऐसे मुद्दे पर यूनियन की भूमिका भी काफी चुनौतीपूर्ण होने जा रही है. उद्योगों से होने वाले प्रदूषण जल से लेकर भूमि और वायु तीनों तरह के होते हैं. जमशेदपुर जैसे शहर में जहां पानी की समस्या काफी है, वहां कंपनी को पानी को लेकर बेहद जवाबदेह बनना होगा और कंपनी को जीरो एफ्लूएंट डिस्चार्ज बनाना होगा. कंपनी को पानी का इस्तेमाल कर जीरो वाटर डिस्चार्ज करना होगा. अगर इस्तेमाल करने के बाद निकलने वाला पानी प्रदूषित होगा तो उसका असर आसपास रहने वाले लोगों पर होगा. इसी तरह वेस्ट जेनरेशन (कचरे) की डम्पिंग ऐसे करनी होगी कि उसका पर्यावरण पर दुष्प्रभाव नहीं हो. इस कचरे की रिसाइक्लिंग पर जोर देना होगा. पुरी में टाटा स्टील प्रबंधन और यूनियन के बीच हुए मंथन में इन विषयों पर गंभीरता से चर्चा की गई कि उद्योगों की उत्पादन क्षमता बढ़ने के बाद पर्यावरण पर उसका ज्यादा नुकसान नहीं हो. उद्योगों से निकलने वाले धुएं और डस्ट पार्टिकल्स भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं और उसका समाज पर बेहद खराब असर पड़ता है. वैसे टाटा स्टील की कोशिश है कि ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाय, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो. यही नहीं टाटा स्टील ने शहर के कई डंपिंग यार्ड को हाल ही में पार्क के रूप में विकसित किया है, ताकि शहर की जैव विविधता को बरकरार रखा जा सके. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 2047 तक भारत को कार्बन न्यूट्रल देश बनाने का आह्वान किया है.
सीमेंट और पावर प्लांट से पर्यावरण पर नुकसान ज्यादा
जमशेदपुर में टाटा स्टील के अलावा टाटा मोटर्स, टिनप्लेट समेत कई अनुषंगी इकाईयां हैं. टिनप्लेट और ट्यूब का विस्तारीकरण किया जा रहा है. ऐसे में आसपास के पर्यावरण पर इसका दबाव पड़ेगा. यही नहीं जमशेदपुर में टाटा पावर कंपनी के साथ ही जोजोबेड़ा में सीमेंट प्लांट है, जिससे सबसे ज्यादा पर्यावरण को नुकसान होता है. अब देखना यह है कि ये कंपनियां पर्यावरण प्रदूषण को लेकर कितना गंभीरता से कदम बढ़ाती है.
प्रदूषण को लेकर विरोध होता रहा है
पर्यावरण प्रदूषण को लेकर समय- समय पर विरोध की आवाज गूंजती रही है. जुस्को द्वारा कचरे के निष्पादन को लेकर बनाए जाने वाले एफ्लूएंट प्लांट को लेकर ग्रामीणों का विरोध हो या फिर गोविंदपुर इलाके में वायु प्रदूषण को लेकर विरोध. आने वाले दिनों में यह विरोध और तेज होने वाला है क्योंकि अगर कंपनियों ने प्रदूषण के मुद्दे को सही तरीके से एड्रेस नहीं किया तो उसका खामियाजा समाज और उद्योग दोनों को भुगतना पड़ेगा.
उदित वाणी टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।