आदिवासी परिवार के लोगों को मिलेगा शादी व मृत्यु भोज के लिए 100 किलो चावल व 10 किलो दाल
उदित वाणी, रांची: मंगलवार को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मोराहाबादी मैदान में दो दिवसीय जनजातीय महोत्सव का रंगारंग कार्यक्रम के साथ भव्य उध्दघाटन किया गया. झामुमो सुप्रीमो सह राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम का विधिवत उध्दघाटन किया.
समारोह में कई राज्यों के कलाकारों ने अपने-अपने पारम्पारिक लोकनृत्यों की भव्य प्रस्तृति की. इस अवसर पर मुख्यमंत्री सोरेन जमकर बोले. वहीं इस अवसर पर उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि अब आदिवासी परिवार में किसी की शादी होने अथवा मृत्यु होने पर उस परिवार को राज्य सरकार की ओर से 100 किलोग्राम चावल व 10 किलो दाल दी जायेगी.
उन्होंने कहा कि गरीब आदिवासी समुदाय के किसी व्यक्ति की शादी व मृत्यु होने पर सामूहिक भोज देने के लिए अब उन्हें कर्ज नहीं लेना पड़ेगा. इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने आदिवासी समुदाय के लोगों को सामूहिक भोज करने के लिए कर्ज लेने से बचने की भी अपील की. उन्होंने कहा कि कर्ज लेना भी हो तो बैंक से लें.
इसके अलावा मुख्यमंत्री ने कहा कि महाजनों से मंहगे ब्याज पर लिया गया कर्ज भी अब आपको वापस नहीं करना है. इसकी शिकायत मिलने पर महाजन पर कार्रवाई होगी.
9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित करे केंद्र
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की भी मांग की. मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने आदिवासी समाज के जीवनस्तर में बदलाव लाने के लिए संविधान के माध्यम से अनेकों प्रावधान किये गए हैं.
लेकिन बाद के नीति निर्माताओं की बेरुखी की वजह से आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताडि़त, विस्थापित एवं शोषित वर्ग आदिवासी वर्ग हैं.
विकास के नए अवतार से जनजातीय भाषा-संस्कृति को ख़तरा
सरना धर्म कोड नहीं दिये जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा कि आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है. दुर्भाग्य यह है कि जिस अलग भाषा, संस्कृति, धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया.
उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने कहा कि हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन, अपनी संस्कृति व अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है. लेकिन विकास के नए अवतार से इन सभी चीजों को ख़तरा है.
विभिन्न जनजातीय भाषा बोलने वालों के पास न तो संख्या बल और न ही धन बल है. उदाहरण के लिए हिन्दू संस्कृति में आदिवासी असुर हैं और बहुसंख्यक संस्कृति में घृणा का भाव लिखा गया है. मूर्तियों के माध्यम से द्वेष दर्शाया गया है.
आखिर उसका बचाव कैसे सुनिश्चित होगा. इस पर हमें सोचना होगा. धन बल भी होता तो जैन, पारसी समुदाय जैसा अपनी संस्कृति को हम बचा पाते.
आदिवासी बचेंगे, तो जंगल व जीव-जंतु भी बचेंगे
मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासियों को बचाओ, जंगल और जीव-जंतु सब बचेगा. उन्होंने कहा कि हम भगवान् बिरसा, एकलव्य, राणा पूंजा की कौम हैं. जिन्हें कोई झुका नहीं सकता, कोई डरा नहीं सकता, कोई हरा नहीं सकता. हम उस कौम के लोग हैं जो गुरु की तस्वीर से हुनर सीख लेते हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सामने से वार करने वाले लोग हैं. सीने पर वार झेलने वाले लोग हैं. हम इस देश के मूल वासी हैं. हमारे जमीन पर ही जंगल है. लोहा है. कोयला है. पर हमारे पास न तो आरा मशीन है और न ही फैक्ट्री. मुख्यमंत्री ने कहा कि बैंकों की स्थिति तो यह है कि हेमन्त सोरेन भी लोन लेने जाए तो उसे पहली दफा नकार देंगे.
कुछ लोगों को तो आदिवासी शब्द से भी चिढ़
आरएसएस व भाजपा पर अप्रत्यक्ष हमला बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ लोगों को तो आदिवासी शब्द से भी चिढ़ है. वे हमें वनवासी कह कर पुकारना चाहते हैं. हमें जाति, धर्म व क्षेत्र के आधार पर बांटा जा रहा है. जबकि सबकी संस्कृति एक है. खून एक है. तो समाज भी एक होना चाहिए. हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए. हमें अपने 200-250 बर्ष पूर्व के इतिहास को याद करना होगा.
‘जोहार’ में व्यापक विचारधारा निहित है, सब जोहार से करें अभिवादन
उन्होंने कहा कि आदिवासी विचार धारा व्यापक है. इसे हमारे अभिवादन में प्रयुक्त होने वाले शब्द से जाना जा सकता है. अभिवादन के लिए जोहार बोल कर हम प्रकृति की जय बोल रहे हैं. सभी के जय की बात कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं तो चाहता हूं कि सभी लोग आदिवासी, गैर आदिवासी अभिवादन के लिए जोहार शब्द का प्रयोग करें.
उदित वाणी टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।