तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में स्थानीय निवासी ही होंगे पात्र
दोनों बिषय संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल होने पर ही होगा प्रभावी
उदित वाणी, रांची: राजनीतिक उठापटक के बीच हेमंत सरकार ने राज्य के दो सर्वाधिक विवादित बिषयों पर अंततः मास्टर स्ट्रोक खेला. राज्य विधानसभा में स्थानीय व्यक्ति की पहचान के लिए 1932 खतियान आधारित बिल ध्वनिमत से पारित किया गया.
इसे झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022 के नाम से पारित किया गया. इस स्थानीय नीति के साथ नियोजन नीति को भी जोड़ा गया. जिसके तहत राज्य सरकार की तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में स्थानीय निवासी ही पात्र होंगे.
इसके साथ ही विधानसभा में ओबीसी को 27 प्रतिशत समेत राज्य में कुल 77 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था लागू करने संबंधी विधेयक भी ध्वनिमत से पारित किया गया.
इस बिल को झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण संशोधन विधेयक 2022 के रूप में पारित किया गया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बतौर कार्मिक विभाग के मंत्री दोनों विधयेकों को सदन में पेश किया. यद्यपि दोनों विधेयकों में यह साफ कर दिया गया है कि उक्त दोनों बिषय संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल होने पर ही प्रभावी होगा.
मुख्यमंत्री ने सदन में घोषणा की है कि विधेयकों को नौवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए वे स्वंय दिल्ली जायेंगे. वहीं दोनों विधयेकों को लेकर विपक्षी सदस्य अमित कुमार यादव, लंबोदर महतो, रामचंद्र चंद्रवंशी व विनोद कुमार सिंह द्वारा कई संशोधन दिया गया तथा विचार करने के लिए विधेयकों को प्रवर समिति को भेजने की मांग की गई.
लेकिन सरकार की ओर से उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया और कहा कि विपक्ष द्वारा विधेयकों को लटकाने को लेकर षडयंत्र किया जा रहा है.
उन्होंने साफ किया कि यह विधेयक सिर्फ नौकरियों के लिए ही नहीं बल्कि स्थानीय लोंगों को हक देने के लिए विधयेक का दायरा काफी विस्तृत होगा. हेमंत सोरेन ने कहा कि विपक्ष के सीने पर आदिवासी, मूलवासियों की भावनाओं की कील ठोंकी जा रही है. इनका संशोधन करने का प्रस्ताव येन केन प्रकारेण इन विधेयकों को लटकाने की साजिश है. यह समूह विचित्र है.
हम पिछले 20 बर्षों से देख रहे हैं कि झारखंड राज्य का इस्तेमाल वस्तु की तरह किया जा रहा है. इन्होंने सिर्फ गंदगी ही फैलाई है. जबकि हमारी सरकार द्वारा गंदगी को साफ किया जा रहा है. इसके बाद संशोधनों को बहुमत से खारिज कर दिया गया. सिर्फ भाकपा माले विधायक विनोद सिंह द्वारा स्थानीयता से संबंधित विधेयक के साथ नियोजन नीति को जोड़ने को लेकर पेश किये गये संशोधन को ही स्वीकार किया गया.
1932 आधारित स्थानीय नीति में कौन-कौन होंगे स्थानीय व्यक्ति, हू-ब-हू परिभाषायें-
स्थानीय व्यक्तियों का अर्थ झारखंड का अधिवास होगा। जो एक भारत का नागरिक है और झारखंड की क्षेत्रीय और भौगोलिक सीमा के भीतर रहता है और उसके या उसके पूर्वजों का नाम 1932 या उससे पहले के सर्वेक्षण/खतियान में दर्ज है.
स्पष्टीकरण-भूमिहीन व्यक्तियों के मामले में स्थानीय व्यक्ति की पहचान ग्राम सभा द्वारा संस्कृति, स्थानीय रीति-रिवाजों, परंपरा आदि के आधार पर की जायेगी. इस मामले में ग्राम सभा के लिए अलग से नियमावली गठित की जायेगी.
जो व्यक्ति या उसके पूर्वज 1932 या उसके पूर्व से झारखंड में वास करते हों. परन्तु खतियान के अनुपलब्ध रहने अथवा अपठनीय होने के कारण या किसी अन्य वैध कारण से जमीन के कागजात नहीं दिखा पा रहे हों. उनके मामले में ग्राम सभा को उनके स्थानीय होने की पहचान करने का अधिकार रहेगा.
इस अधिनियम के तहत परिभाषित व्यक्ति सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक बीमा और रोजगार/बेरोजगारी के संबंध में राज्य की सभी योजनाओं और नीतियों के हकदार होंगे और उन्हें अपनी भूमि, रोजगार या कृषि ऋण/ऋण आदि पर बिशेषाधिकार और संरक्षण प्राप्त होगा. राज्य सरकार को नियम बनाने और कठिनाईयों को दूर करने की शक्ति होगी.
राज्य में कोटिवार 77 प्रतिशत आरक्षण
इधर राज्य में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया और राज्य में कुल 77 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था लागू करने का विधेयक में प्रावधान किया गया है.
जिसके तहत झारखंड के सेवाओं और पदों की सभी नियुक्तियों, जो सीधी भर्ती के माध्यम से भरी जानेवाली हो. उसमें इस प्रकार आरक्षण व्यवस्था होगी-
# खुली गुणागुण [मेरिट] कोटि से- 23 प्रतिशत
# आरक्षित कोटि से- 77 प्रतिशत
# 77 प्रतिशत में विभिन्न कोटिवार आरक्षण-
# अनुसूचित जाति- 12 प्रतिशत
# अनुसूचित जनजाति- 28 प्रतिशत
# अत्यंत पिछड़ा वर्ग [अनुसूची 1] – 15 प्रतिशत
# पिछड़ा वर्ग [अनुसूची 2] – 12 प्रतिशत
# आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग- 10 प्रतिशत
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