उदित वाणी, जमशेदपुर: आज गुरुवार को हेमंत सोरेन सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ, नई सरकार का मंत्रिमंडल 11 मंत्रियों के साथ गठित हुआ है. राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने इन सभी को 5 दिसंबर को राजभवन में आयोजित एक शपथ ग्रहण समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. आइए विस्तार से जानते हैं इन 4 विधायकों के बारे में जिन्हे पहली बार मंत्री मण्डल में जगह मिली है:
संजय प्रसाद यादव
गोड्डा विधानसभा सीट से जोरदार जीत हासिल करने वाले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के विधायक संजय प्रसाद यादव को हेमंत सोरेन की कैबिनेट में पहली बार मंत्री बनाया गया है. संजय बिहार के बांका जिले के निवासी हैं. संजय के राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव के साथ घनिष्ठ रिश्ते हैं. इन रिश्तों का उन्हें राजनीति में कई अवसरों पर लाभ मिला है. उनके करीबी संबंधों का यह परिणाम है कि उन्हें हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई है. संजय प्रसाद यादव का राजनीतिक सफर बहुत उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. वर्ष 2000 में अविभाजित बिहार के गोड्डा विधानसभा से पहली बार विधायक बने थे. हालांकि, 2005 में झारखंड राज्य में हुए पहले विधानसभा चुनाव में वे भारतीय जनता पार्टी के मनोहर प्रसाद टेकरीवाल से हार गए. फिर 2009 में उन्होंने रघुनंदन मंडल को हराकर विधानसभा में वापसी की. 2014 में संजय रघुनंदन मंडल से चुनाव हार गए लेकिन फिर 2016 के उपचुनाव में जीत दर्ज की. 2019 में हुए चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वर्ष 2024 में उन्होंने पूरी ताकत के साथ वापसी की और गोड्डा सीट पर तीसरी बार जीत दर्ज की.
योगेंद्र प्रसाद
योगेंद्र प्रसाद ने गोमिया विधानसभा से 95 हजार वोटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. 21 साल बाद गोमिया से किसी विधायक को मंत्री बनने का अवसर मिला है. योगेंद्र प्रसाद का राजनीतिक सफर एक दिलचस्प संघर्ष से भरा रहा है. वे रामगढ़ जिले के मुरूबंदा के निवासी हैं और उनकी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से हुई थी. पंचायत अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष बनने तक का उनका सफर संघर्षपूर्ण रहा. 1991 में कांग्रेस के हजारीबाग जिला उपाध्यक्ष बने और 1995 में जिलाध्यक्ष के रूप में कार्य किया. कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव की जनता दल में शामिल हो गए थे. झारखंड राज्य के गठन के बाद योगेंद्र प्रसाद ने सुदेश महतो की पार्टी आजसू में कदम रखा. 2007 में गोमिया विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय होने के बाद उन्होंने 2009 में विधानसभा चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे. 2014 में आजसू से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और झामुमो का दामन थामा. झामुमो से 97 हजार वोटों के साथ वे गोमिया के विधायक बने. हालांकि, 2018 में एक मामले में कोर्ट द्वारा उनकी विधायकी समाप्त कर दी गई, लेकिन गोमिया विधानसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी बबीता देवी ने विधायक पद हासिल किया.
राधाकृष्ण किशोर
राधाकृष्ण किशोर को कांग्रेस कोटे से मंत्री बनाया गया है. वे उन चार मंत्रियों में से एक हैं, जिन्हें कांग्रेस के हिस्से से इस मंत्रिमंडल में जगह मिली है.2024 के विधानसभा चुनाव में राधाकृष्ण किशोर को बीजेपी की प्रत्याशी पुष्पा देवी से कड़ी टक्कर मिली थी. यह मुकाबला बेहद मुश्किल था, जिसमें राधाकृष्ण किशोर ने केवल 736 वोटों से जीत हासिल की. उन्हें कुल 71,857 वोट मिले, जबकि बीजेपी की पुष्पा देवी को 71,121 वोट मिले थे. राधाकृष्ण किशोर का राजनीतिक सफर कई मोड़ों से होकर गुजरा है. 2014 में उन्होंने बीजेपी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 2019 में जब उन्हें बीजेपी से टिकट नहीं मिला, तो उन्होंने आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई. इसके बाद उन्होंने आजसू छोड़कर आरजेडी में कदम रखा और फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए, जहां से उन्होंने 2024 में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की
चमरा लिंडा
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के 6 विधायकों को मंत्री पद दिया गया है, जिनमें बिशुनपुर के विधायक चमरा लिंडा का नाम भी शामिल है. चमरा लिंडा 2009 से बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. 2024 के विधानसभा चुनाव में चमरा लिंडा ने बीजेपी के प्रत्याशी समीर उरांव को 32,756 वोटों से हराया. चमरा लिंडा का राजनीतिक सफर बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने झामुमो से बगावत कर दी थी और लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरा. हालांकि, वे तीसरे स्थान पर रहे और इस चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. इसके बाद झामुमो ने उन्हें निलंबित कर दिया, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने उन्हें फिर से बिशुनपुर सीट से मैदान में उतारा, और उन्होंने शानदार जीत दर्ज की. चमरा लिंडा का चुनावी संघर्ष 2005 से शुरू हुआ था, जब उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें केवल 569 वोट मिले थे. यह उनका पहला चुनाव था और हार के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय कल्याण पक्ष के टिकट पर चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने. इसके बाद से उन्होंने लगातार झामुमो के टिकट पर 2014, 2019 और अब 2024 में भी विधानसभा चुनाव जीते.
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