
उदित वाणी, जमशेदपुरः शहर के मशहूर कथाकार जयनंदन ने एक बार फिर शहर का सम्मान बढ़ाया है. जयनंदन को इस साल का प्रतिष्ठित श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान देने की घोषणा की गई है.
निर्णायक समिति की अध्यक्ष श्रीमती चित्रा मुद्गल ने जयनंदन को पत्र के जरिए यह जानकारी दी है. जयनंदन को यह सम्मान शोषित, गरीबों, मजदूरों और किसानों की पीड़ा को अपने साहित्य में जगह देने के लिए दिया गया है. इस पुरस्कार की घोषणा के बाद जयनंदन ने बताया कि वह गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि उनकी साहित्य साधना को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.
2011 से मिल रहा है यह सम्मान
खाद बनाने वाली कंपनी इफको 2011 से यह सम्मान वैसे लेखकों को दे रही है, जिनके साहित्य में गांव और किसान की कहानियां होती हैं. इसके पहले यह सम्मान मशहूर साहित्यकार स्वर्गीय विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर, रामसिंह दिवाकर, रमेश कटारे, रणेन्द्र और शिवमूर्ति को दिया गया है.
जयनंदन को यह सम्मान आगामी 31 जनवरी को जमशेदपुर में होने वाले एक साहित्य समारोह में दिया जाएगा. जयनंदन युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता भी रहे हैं.
इसके अलावा उन्हें राधाकृष्ण पुरस्कार, विजय वर्मा कथा सम्मान, बिहार सरकार राजभाषा सम्मान, आनंद सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, झारखंड साहित्य सेवी सम्मान, स्वदेश स्मृति सम्मान, निर्मल मिलिंद सम्मान मिल चुका है.
जानिए जयनंदन के बारे में
नवादा (बिहार) के मिलकी गांव में जन्में जयनंदन हिन्दी से स्नातकोत्तर हैं. अब तक उनकी कुल पैंतीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें से सात उपन्यास, बाईस कहानी संग्रह, तीन नाट्य संग्रह तथा तीन वैचारिक लेखों का संकलन है.
‘चिमनियों से लहू की गंध’, ‘चौधराहट’, ‘सल्तनत को सुनो गांववालो’, ‘विघटन’, ‘मिल्कियत की बागडोर’, ‘रहमतों की बारिश’, रंग प्रहरी’ (उपन्यास), ‘सन्नाटा भंग’, ‘विश्व बाजार का ऊंट’, ‘एक अकेले गान्ही जी’, ‘कस्तूरी पहचानो वत्स’, ‘दाल नहीं गलेगी अब’, ‘घर फूंक तमाशा’, ‘सूखते स्रोत’, ‘गुहार’, ‘गांव की सिसकियां’, ‘भितरघात’, ‘मेरी प्रिय कथायें’, ‘मेरी प्रिय कहानियां’, ‘सेराज बैंड बाजा’, ‘मायाबी क्षितिज’, ‘आई एस ओ 9000’, ‘निमुंहा गांव’, ‘गोड़पोछना’, ‘तितकी नहीं जायेगी अमेरिका’ आदि (सभी कहानी संग्रह), ‘नेपथ्य का मदारी’, ‘हमला’ तथा ‘हुक्मउदूली’ (तीनों नाटक), ‘मंथन के चैराहे’, ‘मीमांसा के पराग’ (वैचारिक लेखों का संग्रह) तथा ‘राष्ट्रनिर्माण के तीन टाटा सपूत’ (टाटाओं की जीवनी) मशहूर पुस्तकें हैं.
2015 में नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा ‘भारतीय साहित्य पुस्तकमाला’ योजना के अन्तर्गत साझी संस्कृति पर आधारित ‘जयनंदन संकलित कहानियां’ प्रकाशित हुई है.
साथ ही व्यक्तित्व एवं समग्र कृतित्व पर आधारित “जयनंदन : एक शिनाख्त” ग्रंथ और मराठी में अनुदित कहानियों की एक पुस्तक ‘आईएसओ 900’ एवं उपन्यास की तीन पुस्तक ‘विघटन’, ‘मिल्कियत की वागडोर’ तथा ‘चौधराहट’ प्रकाशित हो चुकी हैं.
जयनंदन की कुछ कहानियों का फ्रेंच, स्पैनिश, अंग्रेजी, जर्मन, तेलुगु, मलयालम, तमिल, गुजराती, उर्दू, नेपाली, मराठी, मगही आदि भाषाओं में अनुवाद हो चुका हैं. कुछ कहानियों के टीवी रूपांतरण टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित हो चुका हैं.
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