उदित वाणी, जमशेदपुर: लोक आस्था का महापर्व चैत छठ आज से शुरू हो गया. यह पर्व खासतौर पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. पर्व की शुरुआत “नहाए खाए” के साथ हुई, जिसमें श्रद्धालुओं ने गंगा, सोन, या किसी पवित्र जलाशय में स्नान कर शुद्धता की भावना को आत्मसात किया. इस दिन व्रति श्रद्धालु न केवल पवित्र स्नान करते हैं, बल्कि घरों में विशेष पकवान भी तैयार करते हैं. यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य देवता की पूजा से जुड़ा हुआ है और यह चार दिन तक मनाया जाता है.
नहाए खाए की महत्ता
“नहाए खाए” (1 अप्रैल) छठ महापर्व के पहले दिन की परंपरा है, जब व्रति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके अपने शरीर को शुद्ध करते हैं. इसके बाद वे दिनभर उपवास रखते हैं और पारंपरिक व्यंजन जैसे चिउड़े, पकवान, दाल, चूड़ा, चने और तिल के पकवान खाते हैं. इस दिन विशेष रूप से परिवार के सभी सदस्य एकजुट होकर पूजा करते हैं और एक दूसरे के साथ खुशी साझा करते हैं.
दूसरे दिन का महत्व
चैत छठ के दूसरे दिन (2 अप्रैल) को “खरना” कहा जाता है. इस दिन व्रति पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को विशेष पूजा करते हैं. खरना के दिन खासतौर पर शक्कर की खीर, रोटियां और गुड़ का प्रसाद तैयार कर सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है. इसके बाद व्रति पुनः 36 घंटे के उपवास को शुरू करते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तैयार होते हैं.
सूर्य पूजा की परंपरा
चैत छठ के तीसरे दिन (3 अप्रैल) मुख्य रूप से सूर्य देवता की पूजा के लिए जाना जाता है. श्रद्धालु इस दिन सूर्य को अर्घ्य देते हैं और उनके द्वारा दी गई कृपा से जीवन में समृद्धि और सुख की कामना करते हैं. इस दिन महिलाएं विशेष रूप से इस पूजा को श्रद्धा से करती हैं. चौथे दिन (4 अप्रैल) उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास समाप्त होता है.
आस्था और श्रद्धा का पर्व
चैत छठ पर्व केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व भी है. इस दिन सभी व्रति एकजुट होकर पारिवारिक और सामुदायिक बंधनों को मजबूत करते हैं. लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और इस महापर्व के जरिए अपनी आस्था और संकल्पों को मजबूत करते हैं.
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