अगर यह शख्स नहीं होता, तो डिमना लेक नहीं होता
उदित वाणी, जमशेदपुर: भारत रत्न से सम्मानित और भारत में इंजीनियरिंग के अग्रणी सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती मनाने के लिए भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस के रूप में मनाया जाता है.
12 नवम्बर 1927 को जन्में सर एम विश्वेश्वरैया टाटा स्टील के निदेशक मंडल में शामिल थे. 27 वर्षों (1927-1955) तक टाटा स्टील के निदेशक रहे, जिसके दौरान उन्होंने तकनीकी संस्थान, पुनर्गठन और स्टील वर्क्स एवं डिमना नाला जलापूर्ति योजना में सुधार के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन दिया.
सर एम विश्वेश्वरैया सिंचाई परियोजनाओं के विशेषज्ञ थे. इसलिए निदेशक मंडल ने उन्हें डिमना नाला पर जलाशय के निर्माण से जुड़ी एक योजना सौंपी. 1930 के दशक के अंत में यह महसूस किया गया कि जमशेदपुर के लोगों को पानी की कमी हो सकती है क्योंकि शहर की आबादी तेजी से बढ़ रही थी.
इस तत्कालिक आवश्यकता को संबोधित करने के लिए परियोजना की घोषणा की गई और इसे डिमना नाला जलापूर्ति योजना का नाम दिया गया. उसी अनुसार सर एम विश्वेश्वरैया ने टाटा स्टील वर्क्स और जमशेदपुर शहर के लिए भविष्य में पानी की आवश्यकता से संबंधित एक गहन अध्ययन किया.
उनकी सिफारिशों के आधार पर फरवरी 1940 में डिमना बांध का निर्माण शुरू हुआ. परियोजना सफलतापूर्वक पूरी हुई और 17 अप्रैल, 1944 को पहली बार शहर को पानी की आपूर्ति की गई.
टाटा स्टील के आरएंडडी की शुरूआत की
टाटा स्टील का अनुसंधान एवं विकास विभाग, सर एम विश्वेश्वरैया के दिमाग की उपज थी, जिसे 14 सितंबर, 1937 को स्थापित किया गया था और आर एंड डी भवन का उद्घाटन कंपनी के तत्कालीन अध्यक्ष सर नौरोजी सकलतवाला ने किया था. यह भारत में पहली बार था जब किसी कंपनी के पास अपना आर एंड डी डिवीजन था.
एसएनटीआई के निर्माण में रही अग्रणी भूमिका
सर एम विश्वेश्वरैया को जमशेदपुर तकनीकी संस्थान (अब शावक नानावती तकनीकी संस्थान) के कामकाज से सम्बंधित एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक जांच समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
सर एम विश्वेश्वरैया द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को निदेशक मंडल ने स्वीकार कर लिया. सिफारिशों में से एक यह थी कि जमशेदपुर तकनीकी संस्थान को एक सलाहकार समिति द्वारा प्रशासित किया जाना चाहिए जिसके प्रमुख स्टील कंपनी के भारतीय अधिकारी हों, जिनके पास धातुकर्म में अच्छा अनुभव हो.
सर एम विश्वेश्वरैया द्वारा सुझाई गई सिफारिशें 1932 में संस्थान के पूर्ण पुनर्गठन का आधार बनीं.
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