उदित वाणी, जमशेदपुरः फर्जी डिग्री मामले में यूपी एसआईटी ने कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति गंगाधर पंडा समेत जिन 16 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, वह रिपोर्ट जालसाजी और फरेब की ऐसी दास्तान है, जो शिक्षक समुदाय के नाम पर धब्बा है. एसआईटी की ओर से दर्ज 14 पेज की यह रिपोर्ट आप पढ़कर हैरान रह जाएंगे कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में फर्जी डिग्री की बंदरबांट के लिए किस तरह सारी हदें पार की गईं.
2004 से 2012 के बीच जारी इन डिग्रियों की यूपी एसआईटी द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट के आधार पर अपर मुख्य सचिव गृह की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद इन 16 दोषियों पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया गया.
क्या है प्राथमिकी में
एसआईटी की जांच में पाया गया कि प्राप्तांक (लाब्धांक) पंजिकाओं और अंक पंजिकाओं (क्रॉस लिस्ट) में किसी पर सक्षम अधिकारी का हस्ताक्षर नहीं है. जिसके चलते प्राप्तांक पंजिकाओं की विश्वसनीयता संदिग्ध है. प्राप्तांक पंजिकाओं की बाइंडिंग टूटी हुई है. लाब्धांक पंजिकाओं के संबंधित पृष्ठ बदले हुए हैं अथवा संबंधित पृष्ठ गायब कर दिए गए हैं. कुछ लाब्धांक पंजिकाओं की प्रथम प्रति और द्वितीय प्रति एक दूसरे से भिन्न है.
कुछ लाब्धांक पंजिकाओं की प्रथम प्रति गायब हैं तो कुछ की द्वितीय प्रति गायब है. परीक्षा विभाग के गोपनीय अभिलेखों में भारी संख्या में हेराफेरी और जालसाजी की गई है तथा अभिलेखों को गायब कर दिया गया है. जो एक गंभीर अनियमितता, असंवैधानिक और आपराधिक कृत्य है. यही नहीं अंक पंजिकाओं से मूल पन्ने हटाकर या फाड़कर नये पन्ने जोड़े गये हैं.
जबकि विवि द्वारा निर्णय लिया गया था कि अंक पंजिकाओं और अभिलेखों की 5-5 प्रति पीसीडीएफसीडी संगणक केन्द्र द्वारा तैयार की जाएगी. जिनकी एक-एक प्रति कुलपति, कुलसचिव और उप कुल सचिव परीक्षा कार्यालय में सुरक्षित रहेगी, ताकि विषम परिस्थिति में आवश्यकता पड़ने पर इन सुरक्षित अभिलेखों से किसी प्रकरण के सत्यापन संबंधी विवरणों का मिलान किया जा सके.
टेबुलेशन चार्ट में घोर अनियमितता
टेबुलेशन चार्ट बनाने में भी घोर अनियमितता हुई हैं. 2011 तक सीयूआई ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग करते हुए Dot Matrix Printer/Line Matrix Printer के द्वारा Akshar Processor के हिन्दी फांट का इस्तेमाल किया गया. लेकिन 2012 से 2014 तक GUI सिस्टम का प्रयोग किया गया. टेबुलेशन चार्ट में प्रयुक्त पेपर प्रथम दृष्टया ही भिन्न-भिन्न प्रकार के और लेटर टाइपिंग भी अलग-अलग है.
बीएड की फर्जी डिग्रियों की जमकर बंदरबांट
संपूर्णानंद संस्कृत विवि के 2004 से 2012 के शिक्षा शास्त्री (बीएड) डिग्री से संबंधित सत्यापन विभाग में उपलब्ध सत्यापन रजिस्टर और सिस्टम मैनेजर से प्राप्त रजिस्टर का अवलोकन और मिलान किए जाने पर कुछ सत्यापन रजिस्टरों का पृष्ठ बदला हुआ लगता है. कुछ अभ्यर्थियों का परीक्षाफल एक रजिस्टर में उत्तीर्ण और दूसरे रजिस्टर में अनुत्तीर्ण (फेल) अंकित हैं.
यही नहीं कुछ अभ्यर्थियों का परीक्षाफल एक रजिस्टर में अपूर्ण और दूसरे रजिस्टर में उत्तीर्ण अंकित है. कुछ अभ्यर्थियों का परीक्षाफल एक रजिस्टर में उत्तीर्ण और दूसरे रजिस्टर में उसके बारे में कोई विवरण अंकित नहीं है. हद तब हो गई जब कुछ अभ्यर्थियों का परीक्षाफल एक रजिस्टर में उत्तीर्ण और दूसरे में औपबंधिक अंकित पाया गया. हैं.
प्रमाण पत्रों के सत्यापन में जालसाजी
प्रमाण पत्रों के सत्यापन में भी भारी स्तर पर हेराफेरी की गई. जब इन फर्जी डिग्रियों को विवि के पास सत्यापन के लिए भेजा पाया, तो उसमें भी बड़े स्तर पर हेराफेरी की गई है. एसआईटी द्वारा दायर की गई प्राथमिकी में बताया गया है विवि द्वारा जारी फर्जी डिग्रियों के आधार पर स्कूलों में काम कर रहे शिक्षकों के नाम सामने आने के बाद जब उनके प्रमाण पत्र जांच के लिए विवि को भेजा गया तो उसे सत्यापित कर स्कूल डायट को भेज दिया गया. यह सत्यापन पूरी तरह से फर्जी तरीके से किया गया ताकि उनकी करतूतें सामने नहीं आए.
अभी तक 1210 प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए हैं. इस हेराफेरी और फर्जी प्रमाण पत्रों को जारी करने में तत्कालीन कुलसचिव और परीक्षा नियंत्रक द्वारा उतर प्रदेश राज्य विवि अधिनियम वर्ष 1973 की धारा 16 (1), 16-क (4) और 16-ख का उल्लंघन किया गया है. इनके द्वारा गोपनीय अभिलेखों में भारी संख्या में हेराफेरी, जालसाजी और कूटरचना की गई है. प्राथमिकी में कहा गया है कि गंगाधर पंडा समेत 16 लोगों ने भारी स्तर पर हेराफेरी कर और गोपनीय अभिलेखों को गायब कर आपराधिक कृत्य किया है.
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