उदित वाणी, बोकारो: झारखंड के बोकारो जिले के दुर्गापुर गांव में पिछले लगभग 300 वर्षों से होली नहीं खेली जाती है. यह गांव, जिसमें 5 हजार से अधिक लोग रहते हैं, होली के रंगों का नाम सुनकर ही डर जाते हैं. यहां के लोग इस दिन का पालन बड़ी श्रद्धा और अनुशासन से करते हैं. इस गांव में कोई भी होली खेलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. अगर कोई गांव के बाहर किसी रिश्तेदार के घर होली खेलता है तो वह केवल कुछ खास स्थितियों में ही संभव है, लेकिन गांव में इसका आयोजन मना है. यहां तक कि यहां ब्याह कर आई महिलाएं भी गांव की परंपरा में ढल जाती हैं.
इतिहास में छिपी एक दिलचस्प कहानी
दुर्गापुर गांव में होली न मनाने के पीछे एक दिलचस्प और रहस्यमय कहानी जुड़ी हुई है. यह कहानी गांव के बड़े-बुजुर्गों के अनुसार शुरू होती है. कहा जाता है कि एक समय इस इलाके के राजा, दुर्गा प्रसाद की हत्या होली के दिन रामगढ़ के राजा द्वारा की गई थी. इसके बाद कुछ खानाबदोश मल्हार जाति के लोग करीब 100 साल बाद इस गांव में आए और उन्होंने होली खेली. उस दिन गांव में दो लोगों की मौत हो गई और महामारी फैल गई. जब गांव के लोग अपने पाहन (पंडित) से संपर्क करते हैं, तो उसने बताया कि यह होली खेलने के कारण हुआ था.
बाबा बड़राव की पूजा और शांति की स्थापना
इसके बाद, गांव के लोग दुर्गा पहाड़ के पास स्थित बाबा बड़राव के पास गए और वहां पूजा अर्चना की. उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी, और तब से गांव में शांति स्थापित हुई. इस घटना के बाद से ही गांव के लोग होली नहीं खेलते हैं. गांववाले मानते हैं कि बाबा बड़राव को रंग पसंद नहीं है. उनका विश्वास है कि होली के दिन अगर कोई दूसरे गांव जाता है तो वहां लोग उन्हें रंग देने से डरते हैं.
दुर्गापुर गांव की परंपरा और आज की स्थिति
दुर्गापुर गांव में 11 टोला (बस्तियां) हैं, और यहां की कुल आबादी लगभग 5,000 है. गांव के लोग आज भी इस परंपरा का पालन करते हैं. उनका कहना है कि होली के दिन वे रंग नहीं खेलते, लेकिन पकवान जरूर बनाते हैं और खाते हैं. उनका यह विश्वास आज भी मजबूत है कि होली के दिन रंगों से बचना चाहिए.
रामगढ़ के राजा की दास्तान
गांववालों का कहना है कि यह कहानी कई पीढ़ियों से सुनाई जा रही है. कहा जाता है कि रामगढ़ के राजा पद्म की पत्नी रानी बंगाल से होली के दो दिन पहले किसी रास्ते से गुजर रही थीं, और यहां के राजा दुर्गा प्रसाद ने उन्हें रोककर उनके सामान की जांच की. इसमें उनके द्वारा ले जाए जा रहे नए कपड़े भी शामिल थे. इस बात की जानकारी रानी ने राजा को दी, और होली के दिन राजा अपने दल-बल के साथ यहां पहुंचे और दुर्गा प्रसाद को मौत के घाट उतार दिया. इस घटना के बाद से यह परंपरा बन गई कि दुर्गापुर में होली नहीं खेली जाती है.
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में होली न मनाने की वजह
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के दो गांव, खुरजां और केवली, पिछले 200 सालों से होली नहीं मनाते. इसके पीछे कारण है कि इन गांवों के परिवारों को तेज़ शोर पसंद नहीं है. होली के समय होने वाली पटाखों की तेज़ आवाज से इन गांवों के लोग परेशान होते हैं, जिससे यह परंपरा यहां जारी है.
गुजरात के रामसन गांव में होली न मनाने का कारण
गुजरात के रामसन गांव में भी 200 साल से होली नहीं मनाई जाती. यह गांव भयानक आग में नष्ट हो गया था और यहां के लोग मानते हैं कि इस आग के कारण उन्हें एक श्राप मिला है. गांव में भगवान श्रीराम का नाम ‘राम’ रखा गया है और यहां की मान्यता के अनुसार, होली न मनाने का कारण उस श्राप को बताया जाता है.
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