दीप प्रज्वलन से हुआ शुभारंभ
उदित वाणी, चाईबासा: चाईबासा गौशाला के 124वें तीन दिवसीय गोपाष्टमी मेले का उद्घाटन 25 नवंबर को पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त कुलदीप चौधरी ने दीप प्रज्वलित कर और फीता काटकर किया. इस अवसर पर गौशाला के सचिव बनवारी लाल नेवटिया ने मेले की ऐतिहासिकता और गौशाला के योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि स्वर्गीय बारसीदास पसारी द्वारा 1901 में स्थापित यह गौशाला राज्य में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी है.
गौशाला की उपलब्धियां और चुनौतियां
गौशाला में वर्तमान में 400 गौवंश का पालन-पोषण किया जा रहा है, जिनमें से 50 दुधारू हैं. इनकी सेवा के लिए 50 गौसेवक नियुक्त हैं. सचिव ने बताया कि गौशाला का आय का मुख्य स्रोत दूध की बिक्री है, लेकिन संचालन के लिए हर महीने करीब 2 लाख रुपये की कमी हो रही है.
गौशाला की जमीन का लीज नवीकरण 1994 से लंबित है, जिससे आर्थिक तंगी बढ़ रही है. उन्होंने उपायुक्त से इस मसले को प्राथमिकता से सुलझाने और गौशाला की चारदीवारी निर्माण की मांग की. चारदीवारी न होने के कारण सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की गई.
मेले की रौनक: मिठाइयों से झूले तक सबकुछ खास
गोपाष्टमी मेले में स्थानीय संस्कृति और मनोरंजन का अद्भुत संगम देखने को मिला. मेले में खाजा मिठाई विशेष आकर्षण रही, जिसे 150 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है. इसके अलावा, विभिन्न झूले जैसे ब्रेक डांस, टावर झूला, मिकी माउस, वाटर बोट, बेबी ट्रेन, मौत का कुआं, और जंपिंग जैक बच्चों और युवाओं का ध्यान खींच रहे हैं.
खाद्य प्रेमियों के लिए पुचका, बर्गर, मोमोज, समोसे और पारंपरिक मिठाइयों के साथ-साथ हस्तनिर्मित सामग्रियों, बांस की टोपी, कृषि यंत्र और क्रोकरी की दुकानें भी आकर्षण का केंद्र बनीं.
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
मेले में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात किया गया है. हर कोने पर सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गई है ताकि मेले का आनंद बाधित न हो.
तुलादान और सांस्कृतिक समर्पण
गौशाला मेला तुलादान जैसी पारंपरिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है. इस आयोजन ने न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ावा दिया, बल्कि गौशाला संरक्षण और सेवा का संदेश भी दिया.
गोपाष्टमी मेले का यह आयोजन चाईबासा के लिए गौरव का विषय है, जो स्थानीय परंपराओं और गौसेवा के प्रति समर्पण को प्रतिबिंबित करता है.
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