उदित वाणी, रांची: झारखंड की प्रख्यात लेखिका, कवयित्री, चिंतक और आदिवासी अधिकारों की सशक्त प्रवक्ता डॉ. रोज केरकेट्टा का गुरुवार को सुबह लगभग 11 बजे निधन हो गया. वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ थीं. परिजनों के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को रांची में होने की संभावना है. उनके निधन से पूरे राज्य में शोक की गहराइयाँ व्याप्त हैं.
खड़िया समुदाय से आईं, हिंदी साहित्य को दी नई दृष्टि
डॉ. रोज केरकेट्टा का जन्म 5 दिसंबर 1940 को सिमडेगा जिले के कसिरा सुंदरा टोली गांव में ‘खड़िया’ आदिवासी समुदाय में हुआ था. उन्होंने हिंदी साहित्य में एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की. उनकी लेखनी में आदिवासी संवेदना, सामाजिक न्याय और स्त्री विमर्श का सशक्त समावेश दिखाई देता था.
भाषा, विचार और आंदोलन की त्रयी थीं डॉ. केरकेट्टा
उन्होंने खड़िया भाषा की संरक्षण-यात्रा को एक नई दिशा दी, साथ ही हिंदी साहित्य में भी अपनी अनूठी पहचान स्थापित की. उनकी कहानियाँ और कविताएँ झारखंड की जीवंत सामाजिक सच्चाइयों और जनविमर्श की गूंज रही हैं.
उनका चर्चित कहानी संग्रह ‘पगहा जोरी-जोरी रे घाटो’ स्त्री मन की जटिलताओं को सहजता से उजागर करने के लिए जाना जाता है. वे सिर्फ साहित्यकार नहीं, बल्कि विचार और संघर्ष की जीती-जागती मिसाल थीं.
सम्मान और स्मृतियाँ
अपने साहित्यिक व सामाजिक योगदान के लिए डॉ. केरकेट्टा को प्रभावती सम्मान, रानी दुर्गावती सम्मान और अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान जैसे अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया था.
उनका निधन न केवल झारखंड की साहित्यिक धरती, बल्कि देश भर के आदिवासी समाज और विमर्श के लिए एक अपूरणीय क्षति है. वे आने वाली पीढ़ियों के लिए संघर्ष, विचार और अभिव्यक्ति की प्रतीक बनी रहेंगी.
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