उदित वाणी, रांची: झारखंड के मेदिनीराय कोल ब्लॉक आवंटन मामले में दिल्ली की विशेष अदालत ने पूर्व कोयला सचिव एच. सी. गुप्ता और तत्कालीन संयुक्त सचिव के. एस. क्रोफा को भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त कर दिया है. अदालत ने स्पष्ट किया कि दोनों अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध सिद्ध नहीं हुआ.
न्यायाधीश ने सीबीआई की जांच को बताया एकपक्षीय
इस फैसले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजय बंसल ने सीबीआई की जांच प्रक्रिया पर कड़े सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी ने साक्ष्यों का एकतरफा विश्लेषण किया और तीन स्क्रीनिंग समितियों की बैठकों में लिए गए निर्णयों की व्याख्या में दोहरी नीति अपनाई. जज ने कहा कि जब सरकारी कर्मचारियों को आरोपी बनाया गया, तब सीबीआई ने बैठक की कार्यवाही (मिनट्स) को “गलत दर्ज” मान लिया. जबकि उन्हीं जैसी बैठकों में यदि केवल निजी कंपनियों पर आरोप थे, तो सीबीआई ने मिनट्स को सही ठहराया. न्यायालय ने इसे “पूरी तरह अस्वीकार्य” बताया.
34वीं समिति के प्रमुख रहे गुप्ता पर आरोप, लेकिन नहीं मिला आपराधिक तत्व
कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए 2006 में हुई 34वीं स्क्रीनिंग समिति के अध्यक्ष गुप्ता पर यह आरोप था कि उन्होंने आवेदन की ठीक से जांच नहीं की. अदालत ने इसे प्रशासनिक चूक माना, न कि आपराधिक. न्यायाधीश ने कहा कि यदि कोई कार्य केवल प्रशासनिक लापरवाही के कारण हो और उसमें कोई निजी लाभ या रिश्वत न हो, तो उसे भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
सीबीआई की चुप्पी भी बनी सवाल
अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि जिन मामलों में केवल कंपनियों पर मुकदमा चलाया गया, वहां सीबीआई ने यह नहीं बताया कि आवेदनों की पर्याप्त जांच क्यों नहीं की गई. साथ ही, कुछ कंपनियों द्वारा संपत्ति की पूरी जानकारी न देने के बावजूद उन्हें दोषमुक्त माना गया, जबकि उन्हीं हालात में अधिकारियों पर आपराधिक आरोप लगाए गए.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जांच की गई थी शुरू
यह मामला तब सामने आया जब सुप्रीम कोर्ट ने कोयला ब्लॉकों के आवंटन को “मनमाना” करार देते हुए कई ब्लॉकों की लीज रद्द कर दी थी. उसके बाद सीबीआई ने आवंटन से जुड़े मामलों की जांच शुरू की. मेसर्स कोहिनूर स्टील प्राइवेट लिमिटेड (KSP) को आवंटन दिए जाने को लेकर यह मुकदमा दायर किया गया था.
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