उदित वाणी, रांची: पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने एक विवादास्पद बयान में कहा है कि धर्मांतरण कर चुके आदिवासियों और आदिवासी समाज से बाहर शादी कर चुकी बेटियों को आरक्षण से बाहर करने की मांग की है. यह टिप्पणी उन्होंने झारखंड के बोकारो जिले के जाहेगढ़ में आयोजित सरहुल/बाहा मिलन समारोह में दी.
जनजातीय पहचान पर खतरा
चंपई सोरेन ने अपने भाषण में कहा कि धर्म परिवर्तन करने वाले जनजातीय व्यक्तियों को आरक्षण के लाभ जारी रखना, आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के लिए खतरे की घंटी है. उनका मानना है कि इस तरह की प्रथाएं आदिवासी समाज की मूल पहचान को मिटा सकती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जो जनजातीय महिलाएं बाहरी जाति से विवाह करती हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए.
सांस्कृतिक विलुप्ति का खतरा
सोरेन ने आदिवासी समाज से अपील करते हुए कहा कि समय रहते अगर वे अपनी परंपराओं और धार्मिक प्रथाओं की रक्षा नहीं करते, तो उनकी सांस्कृतिक पहचान खत्म हो जाएगी. उन्होंने चेतावनी दी, “अगर अब नहीं जागे तो हमारे जहरेस्थल, सरना स्थल, और देशावली जैसे पवित्र स्थानों पर कोई पूजा करने वाला नहीं रहेगा.”
संथाल परगना और अवैध अतिक्रमण का मुद्दा
पूर्व मुख्यमंत्री ने संथाल परगना में स्थिति के बिगड़ने पर भी चिंता जताई. उनके अनुसार, आदिवासी समुदाय दोहरी समस्याओं का सामना कर रहा है – एक तरफ धर्मांतरित लोग आरक्षित सीटों पर काबिज हो रहे हैं, और दूसरी तरफ अवैध बांगलादेशी घुसपैठिए आदिवासी भूमि पर कब्जा कर रहे हैं.
सोरेन का कहना था कि ये घुसपैठिए न केवल आदिवासी महिलाओं से विवाह कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय शासन में भी हस्तक्षेप कर रहे हैं. “वे हमारी महिलाओं से विवाह करते हैं, स्थानीय निकाय चुनावों में उनकी मदद से भाग लेते हैं और आरक्षण का गलत उपयोग करते हैं. इसे तुरंत रोका जाना चाहिए,” उन्होंने कहा.
समाज और राजनीति में उठेगा विवाद
सोरेन के इस बयान ने झारखंड में आदिवासी अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान राजनीति के जटिल मसलों पर एक नई बहस छेड़ दी है. उनके बयान को लेकर राज्य में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चाएं शुरू हो सकती हैं.
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