उदित वाणी, झारखंड: सरकार ने राज्य में खनिज संसाधनों से मिलने वाले राजस्व को बढ़ाने के उद्देश्य से एक बड़ा निर्णय लिया है. सरकार ने कोयले सहित विभिन्न खनिजों पर रॉयल्टी और सेस की दरों में बदलाव करते हुए अब कोयले की रॉयल्टी बाजार दर के अनुरूप वसूलने का फैसला किया है. इस फैसले का सीधा असर कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनियों—सीसीएल (सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड), इसीएल (ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) और बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड)—पर पड़ेगा, जो झारखंड में बड़े पैमाने पर कोयला खनन और आपूर्ति करती हैं.
कैसे बदलेगी रॉयल्टी की गणना?
अब तक इन कंपनियों द्वारा उत्पादित कोयले की रॉयल्टी एक तयशुदा दर पर ली जाती थी, जो बाजार मूल्य से कम थी. लेकिन सरकार के इस नए नियम के तहत कोयले की रॉयल्टी बाजार दर के आधार पर तय की जाएगी. इससे राज्य सरकार को कोयले की बिक्री से अधिक राजस्व प्राप्त होगा और झारखंड की आर्थिक स्थिति को मजबूती मिलेगी.
पावर प्लांट्स पर पड़ेगा असर
सीसीएल, इसीएल और बीसीसीएल द्वारा उत्पादित कोयले का बड़ा हिस्सा देशभर के पावर प्लांट्स को बेचा जाता है. रॉयल्टी की दर बढ़ने से इन पावर प्लांट्स की उत्पादन लागत में वृद्धि हो सकती है, जिससे बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि, सरकार का कहना है कि यह निर्णय राज्य के हित में लिया गया है और इससे झारखंड को अधिकतम लाभ मिलेगा.
आठ हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी का अनुमान
झारखंड सरकार को इस नई नीति से सालाना करीब 8,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रॉयल्टी मिलने की उम्मीद है. इससे राज्य की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी और बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण योजनाओं में अधिक निवेश संभव हो सकेगा.
खनन क्षेत्र में आएगा बड़ा बदलाव
खनिज संसाधनों से भरपूर झारखंड में यह निर्णय कोयला उद्योग में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा. सरकार का मानना है कि इससे खनन क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी और अवैध खनन पर भी अंकुश लगेगा. इसके अलावा, राज्य सरकार अन्य खनिजों की रॉयल्टी दरों की समीक्षा भी कर रही है, जिससे भविष्य में अन्य खनिजों पर भी इसी तरह के बदलाव किए जा सकते हैं.
राज्य सरकार के इस फैसले पर कोयला कंपनियों और उद्योग जगत की निगाहें टिकी हैं. हालांकि, सरकार इसे झारखंड के राजस्व और विकास के लिए एक सकारात्मक कदम मान रही है, जिसका लाभ लंबे समय में राज्य की जनता को मिलेगा.
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