उदित वाणी, रांची: झारखंड विधानसभा को अपना नया नेता प्रतिपक्ष मिल गया है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता नियुक्त किया है. गुरुवार को पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में यह निर्णय लिया गया. इसके साथ ही मरांडी झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में कार्य करेंगे.
भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने पर मैं आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी, मा. राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री @JPNadda जी, केंद्रीय गृहमंत्री श्री @AmitShah जी, केंद्रीय पर्यवेक्षक श्री @byadavbjp जी, श्री @drlaxmanbjp जी, प्रदेश प्रभारी श्री @LKBajpaiBJP जी, क्षेत्रीय संगठन… pic.twitter.com/5gUCAj1nPm
— Babulal Marandi (@yourBabulal) March 6, 2025
मरांडी की राजनीतिक यात्रा
बाबूलाल मरांडी एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं. वे नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में सबसे आगे थे. झारखंड सरकार के मंत्री राधा कृष्ण ने भी उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाने की सलाह दी थी. राधा कृष्ण ने यह कहा कि यह बीजेपी का आंतरिक मामला है कि वे किसे नेता प्रतिपक्ष बनाते हैं, लेकिन उनका मानना है कि बाबूलाल मरांडी को ही यह जिम्मेदारी दी जानी चाहिए.
झारखंड विकास मोर्चा से बीजेपी तक
बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के संस्थापक रहे हैं. 2020 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में किया. वे 12वीं, 13वीं, 14वीं और 15वीं लोकसभा के सदस्य रहे हैं और 1998 से 2000 तक एनडीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे हैं.
बीजेपी से नाराजगी और नया मोर्चा
साल 2003 में बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को हटाकर अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बना दिया था, जिससे पार्टी को बड़ा झटका लगा था. मरांडी ने इस निर्णय से नाराज होकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 2006 में विधायकी और पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने खुद की पार्टी, झारखंड विकास मोर्चा, का गठन किया. हालांकि उनकी पार्टी को ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई, और 2020 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में किया.
मरांडी का संसदीय सफर
1991 में बाबूलाल मरांडी बीजेपी के टिकट पर दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन वे हार गए. इसके बाद 1996 में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1998 में बीजेपी ने उन्हें विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य का अध्यक्ष बनाया. उनके नेतृत्व में पार्टी ने राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से 12 पर जीत दर्ज की. 1998 के चुनाव में उन्होंने शिबू सोरेन को संथाल से हराया था.
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