उदित वाणी, जमशेदपुर: 1948 के पहले दिन, यानि 1 जनवरी 1948 को देश की आज़ादी के महज साढ़े चार महीने बाद, खरसावां में आदिवासियों की एक भीड़ पर ओडिशा पुलिस द्वारा की गई अंधाधुंध फायरिंग ने जलियांवाला बाग की काली यादें ताजा कर दीं. यह घटना न केवल खरसावां, बल्कि पूरे कोल्हान के लिए एक काले अध्याय के रूप में याद की जाती है. आज भी, जब नववर्ष आता है, तो इस क्षेत्र के लोग शहीद आदिवासियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, क्योंकि उनकी शहादत ने झारखंड राज्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी. खरसावां गोलीकांड के 77 साल बीत चुके हैं, फिर भी उस दिन मारे गए लोगों की संख्या एक रहस्य बनी हुई है.
शहीदों की संख्या पर रहस्य
खरसावां गोलीकांड में कितने लोग मारे गए, इस बारे में विभिन्न स्रोतों से अलग-अलग आंकड़े सामने आए हैं. एक अंग्रेजी अखबार ने 3 जनवरी 1948 को सरकारी सूत्रों के हवाले से 35 मृतकों की पुष्टि की थी, वहीं एक अन्य अखबार ने इसे 40 बताया था. आंदोलन के नेता जयपाल सिंह ने अपनी सभा में शहीदों की संख्या एक हजार तक बताई थी. पूर्व सांसद महाराजा पीके देव की पुस्तक ‘मेमोयर ऑफ ए बायगॉन एरा’ में इसे 2,000 से ज्यादा बताया गया. झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा की पुस्तक ‘झारखंड आंदोलन के दस्तावेज : शोषण, संघर्ष और शहादत’ में भी इस घटना का विस्तार से उल्लेख किया गया है, पर मारे गए लोगों की संख्या के बारे में अधिकृत आंकड़े अब भी उपलब्ध नहीं हैं.
राजनीतिक टकराव और खरसावां गोलीकांड
15 अगस्त 1947 के बाद जब देश स्वतंत्र हुआ, तो राज्यों का पुनर्गठन किया जा रहा था. सरायकेला और खरसावां छोटी रियासतें थीं, जिनका ओडिशा राज्य में विलय प्रस्तावित था. हालांकि, बिहार के नेताओं ने इसका विरोध किया, और 1 जनवरी 1948 से यह विलय ओडिशा की बजाय बिहार में किया गया. इस राजनीतिक निर्णय के विरोध में आदिवासी नेता जयपाल सिंह ने खरसावां हाट मैदान में विशाल जनसभा का आयोजन किया था. यहां, पुलिस ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी, जिससे सैकड़ों लोग घायल हुए और खरसावां का हाट मैदान खून से सना हुआ था.
कुआं और मिट्टी में दफन लाशें
खरसावां गोलीकांड के बाद, मारे गए लोगों की लाशों को खरसावां हाट मैदान स्थित एक कुएं में डाल दिया गया था और ऊपर से मिट्टी डाल दी गई थी. यही स्थान अब शहीद बेदी और हाट मैदान शहीद पार्क के रूप में परिवर्तित हो चुका है. इस घटना के बाद देशभर में प्रतिक्रियाएँ आईं, और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने इसे जलियांवाला बाग हत्याकांड के समान बताया.
ओडिशा में विलय का विरोध
उस समय बिहार के नेताओं ने सरायकेला और खरसावां के ओडिशा में विलय का विरोध किया. इस विरोध के कारण इन रियासतों का विलय ओडिशा की बजाय बिहार में हुआ.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का श्रद्धांजलि दौरा
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आगामी बुधवार को खरसावां गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए खरसावां आएंगे. वे अपराह्न 12.40 बजे हेलीकॉप्टर से खरसावां के अर्जुना स्टेडियम पहुंचेंगे और फिर शहीद बेदी तथा केसरे मुंडा चौक पर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. इसके बाद वे दोपहर 1.30 बजे रांची के लिए प्रस्थान करेंगे. इस मौके पर मंत्री दीपक बिरुवा, मंत्री रामदास सोरेन, सांसद जोबा माझी, कालीचरण मुंडा, विधायक दशरथ गागराई और अन्य नेता भी उपस्थित रहेंगे.
पूर्व मुख्यमंत्री भी करेंगे श्रद्धांजलि अर्पित
पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और चंपाई सोरेन भी बुधवार को खरसावां आकर शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे. अर्जुन मुंडा अपने समर्थकों के साथ सुबह 8.30 बजे गोंदपुर से पदयात्रा करते हुए शहीद पार्क पहुंचेंगे, वहीं चंपाई सोरेन सुबह 10.30 बजे श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे.
श्रद्धांजलि का कार्यक्रम
श्रद्धांजलि देने वालों में ये कुछ प्रमुख नाम हैं – दिउरी विजय सिंह बोदरा, पांडू बोदरा और धर्मेंद्र बोदरा शहीद बेदी पर पूजा करेंगे, अर्जुन मुंडा और उनके समर्थक श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे, सांसद कालीचरण मुंडा श्रद्धांजलि देंगे, चंपाई सोरेन श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे, आदिवासी समन्वय समिति के सदस्य शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, मंत्री और अन्य नेता श्रद्धांजलि देंगे
नववर्ष पर शहीदों की याद में श्रद्धांजलि
हर साल की तरह, खरसावां गोलीकांड के शहीदों की याद में नववर्ष के पहले दिन कोल्हान क्षेत्र में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. यह दिन ना केवल खरसावां के लिए, बल्कि पूरे झारखंड के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन चुका है.
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