उदित वाणी, जमशेदपुर: आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा गदरा के बस्तियों में एक तत्व सभा का आयोजन किया गया. यह सभा आज सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक चली, जिसमें लोगों को समाज के प्रति जागरूक किया गया.
बलि प्रथा पर विचार
सभा में सुनील आनंद ने बलि प्रथा के बारे में अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने बताया कि यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त होनी चाहिए. भगवान नाराज होते हैं जब उनकी पूजा में बलि दी जाती है. उन्होंने कहा कि यह पृथ्वी परम पुरुष की मानसिक परिकल्पना है और जब वही सृष्टि के पालनहार हैं, तो किसी भी भगवान के नाम पर बलि देना उचित नहीं है. समाज अब धीरे-धीरे विकसित हो रहा है और कई पुरानी मान्यताएं अब झूठी साबित हो रही हैं.
अंधविश्वास और ओझा-गुनी पर विचार
सुनील आनंद ने अंधविश्वास पर भी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि ओझा और गुनी के चक्कर में पड़कर लोग पैसा बर्बाद करते हैं और खुद को भ्रमित करते हैं. यह मानसिक बीमारी है, जो अर्ध विकसित समाज में पाई जाती है. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि लोग किसी भी बीमारियों या संक्रामक बीमारियों के लिए झाड़-फूंक के बजाय सरकारी अस्पतालों का रुख करें. यह भ्रम है कि ओझा-गुनी किसी की जान ले सकते हैं.
मानव जीवन में भक्ति और मानसिक शक्ति का महत्व
सभा में यह भी बताया गया कि मनुष्य के दुखों का कारण उसके कर्मफल और संस्कार होते हैं. इनसे उबरने के लिए मानसिक शक्ति की आवश्यकता होती है, जो परमात्मा के भजन और कीर्तन से प्राप्त होती है, न कि तंत्र-मंत्र से. जब आत्मबल और भक्ति बढ़ती है, तो कोई भी व्यक्ति मनुष्य को गुमराह नहीं कर सकता.
तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास का खंडन
सुनील आनंद ने यह स्पष्ट किया कि तंत्र-मंत्र से किसी भी व्यक्ति को नुकसान नहीं हो सकता. यदि ओझा और गुनी में इतनी शक्ति होती, तो वे सीमा पर बैठकर दुश्मन देश के लोगों को समाप्त कर देते. परंतु ऐसी कोई शक्ति नहीं होती, और इसका कोई प्रमाण नहीं है. परम पुरुष की पूजा से ही जीवन में शक्ति, समस्याओं से लड़ने की प्रेरणा और जीवन जीने की शक्ति मिलती है, न कि किसी को हानि पहुंचाने की शक्ति.
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