नई दिल्ली: मां बनना एक स्त्री के लिए ईश्वर का अनुपम उपहार है. यह अनुभव जीवन में गहराई से बदलाव लाता है—शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से. मां बनते ही उसकी दिनचर्या, प्राथमिकताएं और यहां तक कि नींद से उसका रिश्ता भी पूरी तरह बदल जाता है. रातों की नींद उस शिशु की देखभाल में बीत जाती है, जिसे वह अपनी सांसों से भी ज्यादा सहेजती है. ऐसे में सवाल उठता है—क्या यह बदलाव सामान्य है? और इससे उबरने के उपाय क्या हैं?
पोस्टपार्टम डिप्रेशन: अनदेखी न की जाने वाली सच्चाई
बच्चे के जन्म के बाद कुछ माताओं को मानसिक थकावट और चिड़चिड़ापन महसूस होता है. इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित शोध के अनुसार, यह स्थिति हर सात में से एक महिला को प्रभावित कर सकती है. इसका कारण है हार्मोनल बदलाव, आनुवंशिक प्रवृत्ति और वातावरणीय दबाव. नींद की निरंतर कमी इस मनोदशा को और गहरा कर देती है. मां अक्सर रातों को जागती रहती है—बच्चे को उठाना, दूध पिलाना, डाइपर बदलना और अपने निर्णयों पर बार-बार विचार करना, उसकी आदत बन जाती है.
आयुर्वेद की दृष्टि: ‘सूतिका काल’ है अत्यंत संवेदनशील
आयुर्वेद में प्रसवोत्तर 42 दिन के कालखंड को ‘सूतिका काल’ कहा गया है, जो मां के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए निर्णायक होता है. इस दौरान वात दोष की वृद्धि से थकावट, पाचन गड़बड़ी, शारीरिक दर्द और मानसिक असंतुलन हो सकता है. आयुर्वेद इस अवधि में विशेष आहार, मालिश, विश्राम और संतुलित देखभाल की सलाह देता है. हमारी दादी-नानी भी इसी परंपरा को अपनाकर पीढ़ियों से मांओं की सेवा करती रही हैं.
आधुनिक चिकित्सा भी कहती है—नींद है सेहत की चाबी
दिल्ली स्थित एक प्रतिष्ठित अस्पताल की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मंजूषा गोयल बताती हैं कि मांओं की नींद पर लगातार असर पड़ता है, जो केवल थकान नहीं बल्कि संपूर्ण शरीर और मस्तिष्क को प्रभावित करता है. नींद की कमी से चिड़चिड़ापन, भावनात्मक अस्थिरता, निर्णय लेने की क्षमता में कमी और यहां तक कि इम्युनिटी तथा मेटाबॉलिज़्म तक कमजोर हो सकता है. उनका सुझाव है कि नई माताएं जब भी मौका मिल सके, कुछ पल खुद के लिए निकालें और विश्राम करें. क्योंकि यही विश्राम उन्हें फिर से ऊर्जा और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है.
त्याग से गढ़ती है मां एक नई दुनिया
मां बनना जहां आनंद का स्रोत है, वहीं यह त्याग और समर्पण की भी गाथा है. नींद की कुर्बानी भी इस मार्ग का एक हिस्सा है. मगर यह जरूरी है कि समाज, परिवार और चिकित्सा जगत मांओं को इस समय में सहारा दें—ताकि वे न केवल एक जीवन को जन्म दें, बल्कि स्वयं भी स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकें.
(IANS)
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