उदित वाणी, जमशेदपुर: हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 11 मई को रात 8:01 बजे से हो रही है, जो 12 मई को रात 10:25 बजे तक चलेगी. इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा 12 मई 2025, सोमवार के दिन मनाई जाएगी.
क्यों महत्वपूर्ण है यह दिन?
बुद्ध पूर्णिमा को भगवान गौतम बुद्ध के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. यह वह पावन दिन है जब उन्होंने जन्म लिया, ज्ञान प्राप्त किया और अंततः महानिर्वाण को प्राप्त हुए. तीनों घटनाएं वैशाख पूर्णिमा के दिन ही घटित हुईं, जिससे यह दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र बन गया.
ज्ञान की प्राप्ति और धर्मचक्र प्रवर्तन
गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था. उन्होंने सात वर्षों की कठिन तपस्या के बाद बिहार के बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया. इसके बाद उन्होंने सारनाथ में अपने प्रथम उपदेश द्वारा धर्मचक्र प्रवर्तन किया.
बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थल
गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े चार प्रमुख स्थल हैं – लुंबिनी (जन्म), बोधगया (ज्ञान), सारनाथ (प्रथम उपदेश) और कुशीनगर (महानिर्वाण). इन स्थलों पर हर वर्ष श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.
पीपल पूजन का आध्यात्मिक महत्व
हिंदू परंपरा के अनुसार, वैशाख पूर्णिमा को पीपल वृक्ष की पूजा करना अत्यंत फलदायी होता है. मान्यता है कि इस वृक्ष में स्वयं भगवान विष्णु का वास होता है. सुबह के समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा दिन में माता लक्ष्मी का निवास इसमें माना गया है. यह भी विश्वास किया जाता है कि इस दिन पीपल का पूजन करने से शनि, राहु, केतु जैसे अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है.
कैसे करें पूजा?
बुद्ध पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के बाद पीपल वृक्ष को जल, दूध और काले तिल अर्पित करें. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर वृक्ष की तीन परिक्रमा करें. साथ ही पीपल का पौधा लगाना भी पुण्यकारी माना गया है.
स्नान और दान का पुण्य
इस दिन गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है. यदि पवित्र नदी में स्नान संभव न हो तो स्नान के जल में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है. अपनी क्षमता अनुसार अन्न, वस्त्र, द्रव्य या अन्न का दान अवश्य करें. इससे पितरों की तृप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है.
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