उदित वाणी, मुंबई: ‘मिस्टर भरोसेमंद’ की उपाधि को फिर से सार्थक करते हुए अजय देवगन ‘रेड 2’ में अपने पुराने किरदार अमेय पटनायक के रूप में लौटे हैं. साल 2018 की फिल्म रेड के बाद यह किरदार फिर से काले धन पर करारा वार करता है. फिल्म में अजय देवगन के अलावा रितेश देशमुख , वाणी कपूर , रजत कपूर , सौरभ शुक्ला , अमित सियाल , यशपाल शर्मा , सुप्रिया पाठक , श्रुति पांडे और बृजेंद्र काला आदि भी हैं.
अजय देवगन का सौ में सौ
फिल्म की खासियत यही है कि अजय अपने अभिनय को चिल्लाकर नहीं, बल्कि अपने शरीर की भाषा और शांत आंखों के माध्यम से व्यक्त करते हैं. सादगी भरी वेशभूषा में भी उनका प्रभाव वैसा ही बना रहता है. IRS अफसर के किरदार में अजय देवगन इस बार भी सौ में सौ नंबर लाते हैं. कहानी, निर्देशन, अभिनय और संवाद के स्तर पर फिल्म प्रभाव छोड़ती है. यह फिल्म इस सप्ताह के लिए एक परिपूर्ण पारिवारिक मनोरंजन है – बशर्ते आप संगीत की कमी को नजरअंदाज कर सकें.
फ्रेंचाइजी फिल्मों की नई कड़ी
‘सिंघम’, ‘दृश्यम’, ‘धमाल’ और ‘सन ऑफ सरदार’ जैसी श्रृंखलाओं की तरह ‘रेड 2’ भी एक नई कड़ी बनती नजर आ रही है. ‘शैतान’, ‘मैदान’, ‘नाम’ और ‘आजाद’ जैसी फिल्में दर्शकों को निराश कर चुकी थीं, ऐसे में रेड 2 अजय देवगन के लिए एक ज़ोरदार वापसी का जरिया बनती है.
ठोस लेखन और निर्देशन की बुनियाद
फिल्म की कहानी और पटकथा पर राज कुमार गुप्ता और रितेश शाह की मेहनत झलकती है. संवादों में तीखापन है. जैसे, अमेय का यह कहना – “मैं तो पूरी महाभारत हूं” – दर्शकों की तालियां बटोरता है.फिल्म उस दौर की कहानी है जब मोबाइल और डिजिटल जाल नहीं थे. ईमानदार अधिकारियों को बार-बार स्थानांतरण का सामना करना पड़ता था. ऐसे में कहानी एक नेता पर केंद्रित होती है जो ऊपर से धर्मात्मा, लेकिन अंदर से भ्रष्ट है.
पटकथा की जान: किरदारों की गूंज
रितेश देशमुख इस फिल्म में बॉबी देओल के ‘एनिमल’ वाले खलनायक अवतार को और आगे ले जाते हैं. उनका अभिनय प्रभावी है और वह कहानी के केंद्र में मजबूती से टिके रहते हैं. अमित सियाल, यशपाल शर्मा, बृजेंद्र काला, और श्रुति पांडे जैसे सहायक कलाकारों ने अपने किरदारों को ईमानदारी से निभाया है. खासकर श्रुति पांडे का जुनूनी किरदार याद रह जाता है. सुप्रिया पाठक एक खलनायक की मां के रूप में फिल्म में अभिनय के स्तर को ऊंचा उठाती हैं. रजत कपूर ने आयकर विभाग के उच्च अधिकारी की भूमिका में गंभीरता बनाए रखी है.
संगीत की चूक और सिनेमैटोग्राफी की चमक
फिल्म का संगीत इसकी सबसे कमजोर कड़ी है. राहत फतेह अली खान के ‘तुम्हें दिल्लगी’ का रीमिक्स संस्करण प्रभाव नहीं छोड़ता. हालांकि क्लाइमेक्स में ‘पैसा ये पैसा’ का ओरिजिनल वर्जन दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर देता है.अमित त्रिवेदी का बैकग्राउंड स्कोर, सुधीर चौधरी की सिनेमैटोग्राफी और संदीप फ्रांसिस का संपादन तकनीकी रूप से फिल्म को मजबूती देते हैं.
वाणी कपूर: अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश
वाणी कपूर की भूमिका फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है. वह अजय देवगन के सामने फीकी लगती हैं. पिछली कड़ी में इलियाना डिक्रूज़ की जो मौजूदगी थी, वह इस बार मिसिंग है. हालांकि वाणी ने अपने हिस्से का काम बखूबी करने की कोशिश की है.
अंत में: एक ईमानदार अधिकारी की दमदार वापसी
फिल्म का क्लाइमेक्स दर्शकों को बांधे रखता है. जब अमेय पटनायक सत्ता के काले धन को प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकारों की नाक के नीचे से निकाल कर सरकारी खजाने में पहुंचा देते हैं, तब फिल्म ‘कोष मूलो दंड’ – इस नीति वाक्य को जीवंत कर देती है.
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