
उदित वाणी, जमशेदपुर: संताली भाषा, जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित है, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती है. पंडित रघुनाथ मुर्मू से लेकर हजारों लेखकों और समाजसेवियों तक, सभी ने इसके संवर्धन में अमूल्य योगदान दिया है. इस भाषा के प्रचार-प्रसार में सिनेमा की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है. जैसे हिंदी सिनेमा ने विश्वपटल पर हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाई, वैसे ही डिजिटल युग में संताली सिनेमा भी एक सशक्त अभिव्यक्ति बनकर उभरा है.
जब फिल्में बनीं बदलाव का जरिया
तकनीक ने अब फिल्म निर्माण को सहज बना दिया है, जिससे संताली फिल्मों का दायरा तेजी से विस्तृत हुआ है. लेकिन इसके बावजूद संताली सिनेमा पर केंद्रित गंभीर साहित्य का अभाव महसूस किया जाता रहा है. यूट्यूब, ब्लॉग और अन्य माध्यमों पर सीमित जानकारी ही उपलब्ध है.
दशरथ हांसदा पर केंद्रित पुस्तक की घोषणा
इसी कमी को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है रमेश हांसदा ने. दशकों से संताली सिनेमा से जुड़े रमेश हांसदा ने प्रसिद्ध फिल्मकार दशरथ हांसदा के योगदान को केंद्र में रखकर एक पुस्तक तैयार की है. यह पुस्तक तीन भाषाओं—हिंदी, संताली (ओलचिकी लिपि) और अंग्रेजी—में प्रकाशित होने जा रही है.
पुस्तक के नाम हैं:
संताली सिनेमा और दशरथ हांसदा: एक अनकही कहानी (हिंदी)
संताड़ी सिनेमा आर दशरथ हांसदा: हाक जियोंन काहनी (संताली)
Dashrath Hansda: A Pillar of Santali Cinema – An Untold Story (अंग्रेजी)
संताली सिनेमा की यात्रा का क्रमबद्ध दस्तावेज
लगभग 100 पृष्ठों की इस पुस्तक में लेखक ने अपने अनुभव, शोध और दस्तावेजों के माध्यम से संताली सिनेमा की विकास यात्रा को रेखांकित किया है. गंगाधर हेम्ब्रम की वीडियो फिल्म ‘सारथी नाचार’ से लेकर पहली सेल्यूलाइड फिल्म ‘चांदो लिखोन’ तक की विस्तृत जानकारी पुस्तक में दी गई है.
फिल्में, राजनीति और जनसंपर्क
दशरथ हांसदा की प्रमुख फिल्मों—सगुना एना सुहाग दुलड, सीता नाला रे सागुन सुपारी—के निर्माण के पीछे की कहानियों के साथ-साथ झारखंड के नेताओं जैसे रामदास सोरेन, हेमंत सोरेन, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास की भूमिका का भी विश्लेषण किया गया है. पुस्तक यह भी बताती है कि कैसे इन नेताओं ने सिनेमा को सामाजिक संवाद और जनसंपर्क के प्रभावी माध्यम के रूप में उपयोग किया.
संघर्ष, सपने और प्रेरणा
पुस्तक में दशरथ हांसदा के व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों, सपनों और उपलब्धियों को भी आत्मीयता से चित्रित किया गया है. यह केवल एक जीवनी नहीं, बल्कि उस सृजनशीलता की कहानी है जिसने संताली सिनेमा को नई दिशा दी.
शोधार्थियों और फिल्मप्रेमियों के लिए अमूल्य स्रोत
इस पुस्तक के प्रकाशन से यह उम्मीद की जा रही है कि यह संताली सिनेमा पर शोध करने वाले छात्रों, फिल्मप्रेमियों और भाषा-संस्कृति के अध्येताओं के लिए एक मील का पत्थर बनेगी. यह सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि संताली सिनेमा के इतिहास को सहेजने और प्रेरित करने का माध्यम सिद्ध हो सकती है.
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